जैन धर्म में सन्यास लेने के नियम माने जाते हैं सबसे कठिन
जैन धर्म में सन्यास लेने के बाद इंसान जब साधु या साध्वी बनता है तो वह सांसारिक मोह माया से विरक्त हो जाता है
सन्यासी का जीवन बिताने के लिए वह खुद को परिवार से विरक्त कर ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर समर्पित कर देता है
दीक्षा के लिए उसे जैन धर्म के कठिन नियमों से होकर गुजरना पड़ता है
सत्य के मार्ग पर खुद को समर्पित करने के प्रण के साथ इस यात्रा की शुरुआत होती है
संसार की वास्तविकता समझने के साथ ही इस कठिन माने जाने वाली यात्रा की राह पर वह निकल पड़ता है
भौतिकता से दूर वह सभी सांसारिक सुखों से खुद को दूर करता है
आपको जानकर हैरानी होगी कि अपने बालों को हाथों से नोचकर निकालना पड़ता है
यहां तक की कपड़ों का भी त्याग करना पड़ता है
यदि कोई महिला दीक्षा ले रही है तो उसे सफेद रंग की सूती साड़ी पहननी पड़ती है
सूर्यास्त के बाद जैन मुनि कुछ भी खाते पीते नहीं हैं और भिक्षाटन द्वारा अपना जीवन यापन करते हैं
यात्रा के लिए भी वे पैदल ही चलते हैं