इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद फिर से गहरा चुका है...दोनों ओर से भयंकर मारा-मारी मची हुई है.
फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास ने इजरायल के ऊपर 5 हजार से ज्यादा रॉकेट दागे, जिनसे बहुत-सी इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं, सैकड़ों लोग मारे गए
हमास के हमले के बाद इजरायल ने ऑन रिकॉर्ड स्टेट ऑफ वॉर अलर्ट की घोषणा कर दी है और लाखों सैनिक जंग में उतार दिए हैं
गौर करने वाली बात यह है कि हमास के इस आतंकी हमले के पीछे जियो-पॉलिटिकल एंगल भी छिपा है
हाल ही में अमेरिका और सऊदी अरब के बीच होने वाली डीफेंस पैक्ट को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें सऊदी अरब अमेरिका के साथ एक डील को लेकर योजना बना रहा है
सऊदी-अमेरिका डीफेंस पैक्ट में इस बात का जिक्र है कि अमेरिका, सऊदी अरब की सुरक्षा की गारंटी लेगा. वहीं, बदले में सऊदी अरब फलस्तीन को लेकर जो मांग है उससे पीछे हट जाएगा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका इस डील को लेकर काफी उत्सुक है और जल्द ही वह इसे स्वीकार करने वाला है.
इस डील के होने से कुछ दिनों पहले ही हमास ने इजरायल पर हमला कर दिया, हमास के हमलावरों को लग रहा था कि मुस्लिम दुनिया उनका साथ देगी
हमास के हमले ने इजरायल को गाजा पट्टी में युद्ध की ओर ढकेल दिया है. यही नहीं, यह युद्ध अमेरिका और सऊदी अरब के बीच होने वाले डिफेंस पैक्ट पर भी दवाब बनाएगा.
चूंकि इजरायल और फलस्तीन दो ऐसे देश हैं, जिनका विवाद काफी लंबे समय से चला आ रहा है, तो दोनों के बीच शांति स्थापित करने की कोशिशें बेकार रही हैं
इजरायल और फलस्तीन के बीच के मतभेद की शुरुआत ओटोमन साम्राज्य के खत्म होने के साथ होती है. तब पूरे यूरोप में राष्ट्रवाद का व्यापक प्रभाव देखा जा रहा था, कई देश टुकड़ों-टुकड़ों में बंटे थे
राष्ट्रवाद की लहर कई देशों को करीब ला रही थी. इटली और जर्मनी जैसे देश राष्ट्रवाद के नाम पर एक हो रहे थे. इसका प्रभाव यहूदियों के बीच भी देखने को मिला.
राष्ट्रवाद की भावना यहूदी लोगों के बीच भी जगी, उन्हें अपने पवित्र स्थान पर दोबारा जाकर बसने की लालसा उठी
19वीं सदी में वो पवित्र स्थान था- फलस्तीन, जो यहूदियों की पवित्र भूमि के नाम से जाना जाता था. विश्व युद्धों के दरम्यान यहूदी यूरोप से फलस्तीन लौटने लगे.
1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब ओटोमन साम्राज्य हारने की कगार पर था, तो ब्रिटेन के विदेश मंत्री सर आर्थर बेलफोर ने एक डिक्लेरेशन जारी किया
डिक्लेरेशन में यह इंगित किया गया कि ब्रिटेन, यहूदियों को उनकी पवित्र भूमि फलस्तीन देगा और वहां उनका पुनर्वास करवाएगा
एक तरफ ब्रिटेन ने सामूहिक तौर पर यह कहा कि फलस्तीन हम यहूदियों को देंगे. वहीं दूसरी ओर उसने गुपचुप तरीके से साइक्स-पीको एग्रीमेंट के तहत यह हिस्सा अपने पास रख लिया.
प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ओटोमन साम्राज्य की हार हुई, तो फलस्तीन में ब्रिटिश शासनादेश की शुरुआत हुई. इस दौरान यहां पर यहूदियों की तादाद तेजी से बढ़ने लगी.
हिटलर के शासन के अंतर्गत पूरे यूरोप में यहूदियों का नरसंहार हुआ, करीब 42 लाख यहूदियों को गैस चैंबर में डालकर मार दिया गया
तब यूरोप में रह रहे यहूदियों को महसूस हुआ कि फलस्तीन के अलावा कहीं कोई दूसरी जगह नहीं, जहां यहूदी सुरक्षित रह सकें.
धीरे-धीरे यहूदियों का फलस्तीन में विस्तार होने लगा, तो अरब मूल के लोग वहां से भगाए जाने लगे. इससे अरब यानी कि मुस्लिम देश भड़क गए.
ब्रिटेन अकेला इस मसले को हल करने में सक्षम नहीं था, इसलिए UN में इस मसले पर वोटिंग हुई और नतीजा निकला कि जहां यहूदियों की संख्या ज्यादा है, वो नया देश बनेगा
1948-49 में वो नया देश बना- इजरायल. हालांकि, UN के फैसले के फौरन बाद ही नवनिर्मित इजरायल पर पड़ोसी देशों (इजिप्ट, सीरिया, इराक और जॉर्डन) ने हमला कर दिया. बाद में चारों हार गए.
युद्ध के बाद जॉर्डन के पास फलस्तीन के पूरे वेस्ट बैंक का कंट्रोल हो गया. गाजा पट्टी पर इजिप्ट का. वहीं, जो थोड़ी-बहुत जगह फिलिस्तीन की बची थी, उस पर इजरायल स्थापित हो गया.
युद्ध के कारण फलस्तीन का अस्तित्व न के बराबर हो गया. इजरायल ने फलस्तीन के 50% हिस्से पर कब्जा कर लिया. लगभग 7 लाख अरब फलस्तीन को बतौर शरणार्थी अपना देश छोड़ना पड़ा
अरब इजरायल युद्ध के बाद इजिप्ट, सीरिया और जॉर्डन ने 1967 में दोबारा हमला करने की योजना बनाई. उस युद्ध को सिक्स-डे वॉर के नाम से जाना गया.
इजरायल फिलिस्तीन के बीच जारी संघर्ष के चलते उनमें शांति स्थापित करने के लिए 1993 में ओसलो एकोर्ड समझौता कराया गया.
समझौते में यह निर्णय लिया गया कि फलिस्तीन, इजरायल को एक अंतरराष्ट्रीय देश के रूप में स्वीकार करेगा. वहीं दूसरी ओर इजरायल ने PLO को फलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधि माना.
समझौते में यह भी तय हुआ कि फलिस्तीन सरकार वेस्ट बैंक और गाजा स्ट्रिप को लोकतांत्रिक ढंग से नियंत्रित करेगी. हालांकि, यह समझौता 5 साल के लिए ही किया गया था.
पहले समझौते के बाद शांति स्थापना के लिए कैम्प डेविड-II, 2000 में इजरायल और फलिस्तीन एक मंच पर आए. हालांकि, दोनों के बीच कोई खास सहमति नहीं बन पाई. और अब तक विवाद चला आ रहा है.