चांद पर इंसान ना भेजने के पीछे नासा की है ये मजबूरी
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने साल 1969 में अपोलो 11 मिशन के जरिए 3 अंतरिक्षयात्रियों को चांद पर पहुंचाया था.
इनमें से एक थे नील आर्मस्ट्रांग, जो चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने. यह घटना मानव इतिहास में मील का पत्थर बनी.
नासा ने इसके बाद भी छह और अपोलो मिशन भेजे. इनमें से पांच मिशन सफल भी रहे.
आज ही के दिन यानी 11 दिसंबर को नासा के आखिरी अपोलो मिशन अपोलो 17 ने चांद पर लैंड किया था. 5 दशक का लम्बा समय बीतने के बाद नासा दोबारा इंसान को चांद पर क्यों नहीं भेज पा रहा है.
नासा अब ह्यूमन मून मिशन क्यों नहीं लॉन्च कर रहा है? इसे जानने के लिए पहले यह समझना होगा कि एजेंसी ने इंसानों को वहां क्यों भेजा था.
इंसानों में अंतरिक्ष को लेकर दिलचस्पी पहले भी थी. लेकिन 1960 दशक में हालात कुछ ऐसे बने कि अमेरिका और सोवियत संघ के बीच स्पेस में पहुंचने की होड़ मच गई.
पहली सफल मून लैंडिग के बाद नागरिकों और सरकार को स्पेस मिशन में इतनी रुची नहीं रही. उस रेस को जीतने औरएक बार चांद पर पहुंचने के बाद चंद्रमा पर और मिशन की जरूरत खत्म सी हो गई.
इंसान को चांद पर भेजना काफी महंगा भी साबित हो रहा था. नासा का एनुअल बजट 1969 में 4 बिलियन डॉलर से घटकर 1974 में 3 बिलियन डॉलर रह गया था.
स्पेस एजेंसी नासा ने भी 2017 में आर्टेमिस प्रोग्राम की शुरूआत की है. इसका मकसद चांद पर फिर से मनुष्यों को भेजना है और चांद के बारे में और ज्यादा जानकारी जुटाना है.