दरअसल यह शैली उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की ही तीन शैलियों में से एक है. यही नहीं इस शैली के साथ मंदिर में राजस्थान से बंसी पहाड़पुर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है.
नागर शैली की बात करें तो 5वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास उत्पन्न इस शैली ने भारत के कई क्षेत्रों में मंदिर वास्तुकला को प्रभावित किया है.
इस शैली की एक विशेषता विस्तृत सीमा दीवारों या द्वारों की कमी होती है. इस तरह की शैली में गर्भगृह सदैव सबसे ऊंचे टावर के नीचे स्थित होता है.
श्री राम दरबार पहली मंजिल पर होगा और पांच मंडप होंगे - नृत्य मंडप, रंग मंडप, सभा मंडप, प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप.
मंदिर में 'नागर शैली' के साथ, भगवान विष्णु के 8 रूपों का भी वास्तुकला में उपयोग किया जा रहा है जो मंदिर को और ज्यादा विशेष बनाएगा.