साहित्यिक जगत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक “बुकर प्राइज” हाल ही में अपने ऑरजिनल स्पॉन्सर बुकर ग्रुप का अतीत ‘स्लेवरी’ (गुलामी) से जुड़ा के कारण आलोचनाओं के घेरे में आ गया है.
उन्होंने लिखा, “हाय @TheBookerPrizes, मैं आपकी पारदर्शिता की सचमुच सराहना करता हूं. वेबसाइट पर जिन गुलाम अफ़्रीकी लोगों का उल्लेख किया गया है…मैं उन्हीं परिवारों में से हूं.
कब हुई इसकी शुरुआत बुकर पुरस्कार 1969 में शुरू किया गया था, शुरुआत में यह केवल राष्ट्रमंडल देशों के लेखकों के लिए था, लेकिन बाद में इसे विश्व स्तर पर भी दिया जाने लगा.
यह अंग्रेजी में उत्कृष्ट आलेखों-विस्तृत उपन्यास के लिए प्रतिवर्ष दिया जाने वाला ब्रिटिश लिटरेचरी अवार्ड है. जिन्हें इस अवार्ड से पुरस्कृत किया जाता है, उनको 50 हजार पाउंड यानी 52,31,729 रुपये मिलते हैं.
साल 1969 में बुकर कंपनी तथा मैककोनेल लिमिटेड द्वारा इसकी शुरूआत की गई, संस्थापकों में जॉक कैंपबेल, चार्ल्स टायरेल और टॉम माश्लर थे
इस पुरस्कार की सह-स्थापना पब्लिशर टॉम माश्लर और ग्राहम सी ग्रीन द्वारा की गई थी, और 1969 से 2001 तक, इसे ब्रिटिश थोक खाद्य कंपनी, जिसे बुकर ग्रुप लिमिटेड कहा जाता था,
साल 2002 में, इस पुरस्कार का स्पॉन्सर ब्रिटिश इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट फर्म मैन ग्रुप बन गया, और इस प्रकार इसे “द मैन बुकर प्राइज” के रूप में जाना जाने लगा.
साल 2019 में मैन ग्रुप द्वारा स्पॉन्सरशिप समाप्त करने के बाद इसे अमेरिकी चैरिटी क्रैंकस्टार्ट स्पॉन्सर करने लगी और पुरस्कार का नाम वापस इसके मूल ‘बुकर प्राइज’ में बदल दिया.
वर्ष 1834 में गुयाना में दासता समाप्त कर दी गई, तो 52 मुक्त दासों के लिए बुकर बंधुओं को स्टेट से मुआवजा मिला. यह राशि भारतीय मुद्रा में 3,95,56,725 रुपये होती है.
बुकर वेबसाइट के अनुसार, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में लेगेसीज़ ऑफ़ स्लेव ओनरशिप डेटाबेस में 2,884 पाउंड की राशि दर्ज की गई, जो 2020 में 378,000 पाउंड के बराबर हो गई.