मुनव्वर राना का नाम उर्दू के अज़ीम शायरों में शुमार है. उन्होंने मां और बच्चे के रिश्ते को अपनी शायरियों में इस कदर बांधा कि वे दिलों को छू जाती हैं. बीते जनवरी महीने में 71 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था.
शायरी के अलावा उनकी ग़ज़लों, नज़्मों और कविताओं ने उर्दू के साथ ही हिंदी साहित्य को भी समृद्ध किया है. मदर्स डे के मौके पर मां के लिए मुनव्वर राना की कलम से निकले कुछ शेर.
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू,मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना.
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई,मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई.
ऐ अंधेरे! देख ले मुंह तेरा काला हो गया,मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया.
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,बस एक मां है, जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती.----------------------------जब तक रहा हूं धूप में चादर बना रहा,
मैं अपनी मां का आखिरी ज़ेवर बना रहा.
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है.----------------------------मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है,
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है.
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं,मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं.
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है.
कुछ नहीं होगा तो आंचल में छुपा लेगी मुझे,मां कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी.