"कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली" कहावत कैसे बनी? ये है इसका सच

बचपन से लेकर आज तक हजारों बार इस कहावत को सुना होगा- "कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली". आमतौर पर यह ही पढ़ाया और बताया जाता था कि इस कहावत का अर्थ अमीर और गरीब के बीच तुलना करने के लिए है. 

दरअसल "कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली" वाली कहावत का अमीरी और गरीबी का दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. इसके अलावा न ही इस कहावत का गंगू तेली से कोई संबंध है. 

अक्सर लोग इस कहावत को लेकर यही सोचते हैं कि किसी गंगू नाम के तेली की तुलना राजा भोज से की जा रही है. मगर, ये एक सिरे से गलत है. बल्कि, गंगू तेली नाम के शख्स खुद राजा थे. 

इस कहावत का असलियत जानकर उन लोगों का भी बौद्धिक विकास होगा जो आज तक इसका इस्तेमाल अमीरी-गरीबी की तुलना के लिए करते आए हैं.

दरअसल, इस कहावत का संबंध मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल और उसके जिला धार से है. भोपाल का पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था.

भोजपाल,‌ नाम धार के राजा भोजपाल से मिला. समय के साथ इस नाम में से "ज" शब्द गायब हो गया और नाम भोपाल बन गया. 

कहते हैं, कलचुरी के राजा गांगेय (अर्थात् गंगू) और चालुक्य राजा तेलंग (अर्थात् तेली) ने एक बार राजा भोज के राज्य पर हमला कर दिया. 

इस युद्ध में राजा भोज ने इन दोनों राजाओं को हरा दिया. जिसके बाद व्यंग्य के तौर पर यह कहावत प्रसिद्ध हुई "कहां राजा भोज-कहां गंगू तेली".