भीष्म ने क्यों 58 दिनों के बाद त्यागा था अपना शरीर? जानें इससे जुड़ी रोचक कथा
भीष्म महाभारत काल के महान योद्धा थे. इनका नाम पहले देवव्रत था लेकिन उन्होंने आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी.
अपनी इसी भीष्म प्रतिज्ञा के कारण ही बाद में इनका नाम भीष्म पड़ा.
महाभारत के युद्ध में अर्जुन के द्वारा चलाए गए बाणों से पूरा शरीर छलनी होने के बाद भयंकर पीड़ा में भी भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर लेटे रहे थे.
घोर पीड़ा सहने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपना शरीर नहीं त्यागा था. उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था.
इसी कारण युद्ध में अर्जुन के द्वारा बुरी तरह से घायल होने के बाद भी पितामह घोर पीड़ा सहते हुए 58 दिनों तक जीवित रहे थे.
भीष्म पितामह मृत्यु शैया पर 58 दिन तक घोर पीड़ा सहने के बाद भी जीवित रहे. उसके बाद सूर्य के उत्तरायण होने पर उन्होंने देह का त्याग किया.
क्योंकि मान्यता है जो व्यक्ति सूर्य उत्तरायण के दिन देह का त्याग करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इसी मान्यता के कारण ही 58 दिनों तक घोर पीड़ा सहने के बाद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण को रोक रखा था और सूर्य उत्तरायण के दिन अपने शरीर का त्याग कर दिया था.
सूर्य उत्तरायण के दिन भीष्म पितामह ने अपनी देह का त्याग किया था, इसी वजह से सूर्य उत्तरायण के दिन भीष्म अष्टमी मनाई जाती है.