10 सालों में कितने बदले राहुल गांधी? 2024 में दिखा दमदार अंदाज

आम चुनाव के नतीजों के बाद राहुल एक नए अवतार में सबके सामने हैं. अब राहुल की विचारधारा ही कांग्रेस की विचारधारा है.

राहुल की सोच ही कांग्रेस का नैरेटिव है. सबकुछ राहुल के इर्द-गिर्द और जद में आ चुका है. आज जो कांग्रेस है, वो राहुल की कांग्रेस है.

राहुल के लोग ही अब कांग्रेस का संगठन संभाल रहे हैं. पुराने मैनेजर अब बैठकों तक सीमित हैं. धीरे-धीरे वहां भी भीड़ कम होगी. नए चेहरे पार्टी में उभरे हैं. राज्यों में मजबूत किए गए हैं.

आज की कांग्रेस को राहुल गढ़ रहे हैं और पुराने खोल से निकलकर आगे बढ़ रहे हैं.15 साल में ये पहला चुनाव है जब राहुल और पप्पू शब्द एकसाथ इस्तेमाल नहीं हुए.

विरोधियों और प्रतिपक्ष को समझ आ चुका है कि राहुल अब पप्पू रहे नहीं और उनको ऐसा कहकर सिवाय नुकसान के कुछ अर्जित नहीं होना है.

सोशल मीडिया पर राहुल को सुनने वालों की तादाद बढ़ी है. टीवी पर कांग्रेस के विज्ञापन इसबार भाजपा के विज्ञापनों पर भारी पड़े.

पुराने इंटरव्यू की रील्स के जरिए जो ट्रोलिंग राहुल ने इस चुनाव से पहले तक झेली थी, उसके चलते इसबार मीडिया राहुल के इंटरव्यू से वंचित रहा.

राहुल ने इस तरह मीडिया को अवसर से वंचित किया और एक कठिन संदेश भी दिया. यूपी के जनादेश में राहुल की एक बड़ी भूमिका है.

दलितों को समाजवादी पार्टी के बटन तक लाना आसान नहीं था. पीडीए का फार्मूला अखिलेश के लिए रामबाण था लेकिन उसके लिए पुल का काम राहुल ने ही किया.

संविधान और आरक्षण का नैरेटिव दलितों के बीच मुद्दा तो बन गया था पर असल चुनौती थी दलितों का वोट सपा में शिफ्ट करवाना. इस सहजता को राहुल के नाम पर ही अर्जित किया जा सका.

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट पिछले 10 साल में बंटा हुआ ही नज़र आया. सपा और बसपा के बीच झूलता ये वोटबैंक पिछले कुछ समय में कांग्रेस के प्रति लामबंद होता नज़र आ रहा था.

अखिलेश ने इस मूड-शिफ्ट को 2024 की शुरुआत में भांपकर ही कांग्रेस के साथ फेल हो चुकी जोड़ी को दोबारा चांस दिया.

आज कांग्रेस मजबूत है. एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला है लेकिन वहां भी पावर बैलेंस दिख रहा है.

आने वाले दिनों में कांग्रेस और मुखर होकर देश के सामने एक मजबूत विपक्ष की भूमिका में नज़र आएगी.

राहुल इसके नायक होंगे. ऐसा नहीं है कि राहुल के सामने चुनौतियां नहीं हैं या उनमें अब कोई कमी नहीं, लेकिन राजनीति में आदर्श होना ज़रूरी नहीं होता.