8 जुलाई 1497 को पुर्तगाल के नागरिक वास्को डी गामा (Vasco da Gama) भारत की खोज पर निकले थे. इससे पहले कोलंबस भारत की खोज करते-करते अमेरिका पहुंच गए थे.

पुर्तगाल के राजा जॉन की इच्छा भी भारत पहुंचने की थी, लेकिन वह ऐसा कर रही सके थे, क्योंकि इससे पहले ही उनका निधन हो गया था. इस बाद यह बीड़ा उनके वारिस इमैनुएल ने उठाया.

भारत पहुंचने का समुद्री रास्ता खोजने के जिम्मेदारी पूरी करने के लिए उन्होंने कमांडर के तौर पर वास्को डी गामा को चुना था. वास्को के भारत आने के बाद पुर्तगाली यहां पहुंच थे और गोवा में अपना साम्राज्य स्थापित किया था.

वास्को तीन जहाजों के साथ भारत की खोज पर निकले थे. वास्को के जहाज का नाम ‘सैन राफेल’ था. बाकी दोनों जहाजों पर कमांडर के तौर उनके भाई पाओलो और दोस्त निकोलस कोएलो तैनात किए गए थे.

उनकी ये यात्रा बहुत आसान नहीं थी. इस दौरान समुद्र में उन्हें कई तूफानों का सामना करना पड़ा और वह कई देशों से होते हुए भारत पहुंचे थे.

यात्रा के दौरान उन्हें अपने जहाज पर नाविकों और अन्य कर्मचारियों की बगावत भी झेलनी पड़ी थी. दरअसल तूफान के दौरान उनके जहाज पर पानी भर गया था तो कर्मचारियों ने पुर्तगाल वापस लौटने के लिए विद्रोह कर दिया था.

हालांकि वास्को का कहना था कि ‘हम या तो भारत जाएंगे या यहीं मरेंगे.’ इसके साथ ही उन्होंने विद्रोह को कुचलने के लिए इसमें शामिल लोगों को बंदी बना लिया था.

पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से यात्रा शुरू करने के बाद वे पूर्वी अ​फ्रीका के देश मोजाम्बिक पहुंचे थे. यहां से मोंबासा होते हुए वह मेलिंदा पहुंचे थे और यहां के राजा से मुलाकात की थी. अनुकूल मौसम न होने के कारण उन्हें यहां काफी दिनों तक रुकना पड़ा था.

इसके बाद 20 मई 1498 को उनका जहाज भारत में वर्तमान केरल के कालीकट (अब कोझीकोड) तट पहुंचा था. वह 100 से अधिक लोगों के साथ इस यात्रा पर निकले थे, लेकिन यात्रा के समापन पर सिर्फ एक तिहाई लोग ही बच पाए थे.

यहां उन्होंने कालीकट के राजा से व्यापार संधि की. वह 1502 में फिर भारत आए. 1524 में भारत की तीसरी यात्रा के दौरान वास्को डी गामा का 25 मार्च को निधन हो गया था. उन्हें कोच्चि में दफनाया गया था. करीब 14 साल बाद 1538 में उनके अवशेषों को पुर्तगाल भेजा गया था.