कौन थे कैप्टन सौरभ कालिया, जो कारगिल युद्ध में सबसे पहले हुए थे शहीद 

ये कहानी उस जंग के पहले शहीद की है. जिसने महज 22 बरस की उम्र में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. 

पाकिस्तान के नापाक मंसूबे भी उस वक्त बेनकाब हुए जब कारगिल के पहले शहीद का शव घर पहुंचा था. उस शहीद का नाम है कैप्टन सौरभ कालिया.

29 जून 1976 को सौरभ कालिया का जन्म अमृतसर में हुआ था. वो मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले थे.

कहते हैं कि करगिल युद्ध में पाकिस्तान की नापाक हरकत का भारतीय सेना को पता भी ना चलता अगर कुछ चरवाहों की नजर कारगिल की पहाड़ियों पर हथियारबंद घुसपैठियों पर ना पड़ी होती. 

3 मई 1999 को चरवाहे ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर हथियारबंद लोगों को देखा और फौरन इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी, जिसके बाद कैप्टन कालिया समेत 6 जवानों के एक दल को पेट्रोलिंग के लिए भेजने का फैसला लिया.

5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया.

22 दिनों तक कैप्टन सौरव कालिया और उनके साथियों को भारत को बिना सूचना दिए पाकिस्तान ने बंदी बनाकर रखा और कई अमानवीय यातनाएं दीं. 

उस वक्त भारतीय सेना के अधिकारियों के मुताबिक सौरभ कालिया और उनकी टीम को 15 मई को पाकिस्तानी सेना ने पकड़ा और 7 जून तक उन्हें कई यातनाएं दी. 

जिनेवा कन्वेंशन के मुताबिक युद्धबंदियों के साथ इस तरह का सलूक कोई देश नहीं कर सकता लेकिन पाकिस्तान ने नियम कायदे तो छोड़िये इंसानियत तक को तार-तार कर दिया था.

इसका खुलासा तब हुआ जब पाकिस्तान ने 7 जून 1999 को सौरभ कालिया और उनकी टीम के शव वापस लौटाए. पाकिस्तान ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थीं. 

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि भारतीय सैनिकों के शरीर को जगह-जगह गर्म सरिये और सिगरेट से दागा गया था. 

सौरभ कालिया का पार्थिव शरीर जब उनके पैतृक आवास पालमपुर में पहुंचा तो उनके परिजनों की रूह कांप गई. उनके माता-पिता ने अपने बेटे का आखिर दीदार करने से भी इनकार कर दिया था. 

उस वक्त सौरभ के भाई वैभव ने बताया कि शव को पहचानना बहुत मुश्किल था क्योंकि उनकी आंखें फोड़ दी गई थी और दांत तोड़ दिए गए थे. चेहरे पर सिर्फ भौहें बची हुई थी, निजी अंगों के साथ भी छेड़छाड़ की गई थी.

कुल मिलाकर शहीद कैप्टन कालिया के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार की गई थी. जो जेनेवा कन्वेंशन के साथ-साथ भारत पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते का भी उल्लंघन था.