Sawan 2024: सावन में नंगे पांव क्यों चलते हैं कांवड़िए?  

पौराणिक मान्यतानुसार, कांवड़ यात्रा का संबंध ऋषि जमदग्नि और राजा सहस्त्रबाहु से है

कहा जाता है कि ऋषि जमदग्नि के पास एक कामधेनु गाय थी. उस गाय से जो कुछ भी मांगा जाता था वह मिल जाता. 

राजा सहस्त्रबाहु को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने ऋषि से वह गाय मांगा, मगर जमदग्नि ऋषि ने उन्हें गाय देने से मना कर दिया.

कहा जाता है कि सहस्त्रबाहु क्रोध में आकर ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी.

जब परशुराम को यह पता चला कि सहस्त्रबाहु ने कामधेनु गाय को पाने के लिए उनके पिता की हत्या कर दी तो उन्होंने सहस्रबाहु की हत्या कर दी

जिसके बाद परशुराम के कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप जमदग्नि को जीवनदान मिला.

जीवित होने पर ऋषि जमदग्नि को पता चला कि परशुराम ने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया तो उन्होंने पाश्चाताप करने के लिए परशुराम से शिवजी का जलाभिषेक करने को कहा.

पिता की आज्ञा पाकर परशुराम शिवजी की जलाभिषेक करने के लिए कई किलोमीटर नंगे पांव चले.

परशुराम ने गंगा नदी का जल लाकर अपने आश्रम के पास एक शिवलिंग को स्थापित किया और महादेव का जलाभिषेक किया. 

कहा जाता है कि शिवजी के भक्त इसी परंपरा को मानते हुए हर साल सावन में नंगे पांव कांवड़ में जल लेकर यात्रा करते हैं और शिवलिंग पर उस जल को अर्पित करते हैं.