इस गांव में बनते हैं नर्मदेश्वर शिवलिंग, देश-विदेश से लेने आते हैं भक्त
मध्य प्रदेश में नर्मदा के किनारे खरगोन जिले के बकवां गांव अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है.
दुनिया भर में इस गांव की चर्चा नर्मदेश्वर शिवलिंग की वजह से भी होती है. इस गांव से गुजर रही नर्मदा की तली में प्राकृतिक शिवलिंग बनते हैं.
आपस में पत्थरों के टकराने और घिसने की वजह से ऐसे-ऐसे शिवलिंग बनते हैं, जिन्हें देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं.
इन शिवलिंगों की दुनिया भर में डिमांड होती है और लोग लाखों रुपये में खरीद कर यहां से शिवलिंग ले जाकर अपने मंदिरों में स्थापित करते हैं.
इन प्राकृतिक शिवलिंगों को नर्मदा की तली से निकाल कर इस गांव में रहने वाले केवट समाज के लोग तराश कर फाइनल टच देते हैं.
यहां केवट समाज के लोग शिवलिंगों को तराशने का काम कुटीर उद्योग की तर्ज पर करते हैं. उनका कहना है कि त्रेता में उनके समाज पर भगवान राम ने कृपा की थी. अब कलियुग में भगवान शिव की कृपा बरस रही है.
स्थानीय लोगों के मुताबिक इस गांव से निकल रही नर्मदा नदी में काफी तेज बहाव है. इसकी वजह से बड़े-बड़े पत्थर आपस में टकराते हुए आते हैं.
टकराव की वजह से ये पत्थर टूटते हैं और घिसते-घिसते अपने आप ही अंडाकार शिवलिंग के शक्ल में परिवर्तित होते जाते हैं.
गांव के लोग नर्मदा के तल से इन पत्थरों को निकाल कर अपने घर ले जाते हैं और फिर आवश्यकता के मुताबिक इसे बारीकी से तराशने और नक्काशी के जरिए विभिन्न आकृतियों को उकेरने का काम करते हैं.
खास बनावट वाले शिवलिंग की डिमांड विदेशों से भी आती है और उन शिवलिंगों के लिए लाखों रुपये मिलते हैं. नर्मदा नदी के तली से निकले ये पत्थर भूरे, काले, बादामी या नीले रंग के होते हैं.