बंटवारे के दौरान भारत-पाक के बीच इस चीज को लेकर हुई थी खूब लड़ाई?

बंटवारे के दौरान जिस चीज को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच सबसे ज्यादा तू-तू मैं-मैं हुई, वो थी वायसराय की घोड़ागाड़ी या बग्घी.

इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ में लिखते हैं कि वायसराय के पास बारह घोड़ागाड़ी थी. ये घोड़ागाड़ी या बग्घी हाथ से गढ़ी सोने और चांदी से बनी थीं.

साथ ही तरह-तरह की सजावटों से लैस थीं और इनपर लाल मखमली गद्दियां लगी थीं. एक तरीके से इन घोड़ागाड़ियों में साम्राज्यवादी सत्ता की सारी शान-शौकत नजर आती थी.

भारत के हर वायसराय और हर शाही मेहमान को इन्हीं में से किसी घोड़ागाड़ी पर बिठाकर राजधानी की सड़कों पर घुमाया जाता था.

कॉलिन्स और लापियर लिखते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत ने ये घोड़ागाड़ी औपचारिक मौकों पर वायसराय की सवारी के लिए खासतौर पर बनवाया था.

सबसे बड़ी बात यह थी कि इनमें से 6 घोड़ागाड़ी सोने की और 6 चांदी की बनी थी. ऐसे में छह-छह गाड़ियों के सेट को तोड़ना ठीक नहीं था.

पहले तय किया गया कि भारत और पाकिस्तान में एक को सोने वाली गाड़ी दे दी जाए और दूसरे को चांदी वाली,

लेकिन यह तय नहीं हो पा रहा था कि सोने वाली गाड़ी किसको मिलेगी और चांदी वाली किसके हिस्से जाएगी. दोनों देश अपने लिए सोने वाली घोड़ागाड़ी या बग्घी चाहते थे.

कॉलिन्स और लापियर लिखते हैं कि कई दिनों की तोलमोल के बाद जब कोई फैसला नहीं हो पाया तो वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के ए.डी.सी. लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने सुझाव दिया कि

सिक्का उछालकर सन-पुतली के आधार पर इस बात का फैसला किया जाए कि कौन सी गाड़ी किसे मिलेगी.

उस वक्त वहां पाकिस्तान बॉडीगार्ड के हाल में नियुक्त कमांडर मेजर याकूब खां और वायसराय बॉडीगार्ड के कमांडर मेजर गोविंद सिंह खड़े थे. लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज का सुझाव मान लिया गया.

माउंटबेटन के ए.डी.सी. लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने अपनी जेब से चांदी का एक सिक्का निकाला और उसे हवा में उछाल दिया. सिक्का खनकता हुआ फर्श पर आ गिरा.

मेजर गोविंद सिंह के मुंह से खुशी की चीख निकल गई. भाग्य ने फैसला कर दिया था कि सोने की बग्घियां भारत को मिलेंगी और आजाद हिंदुस्तान की सड़कों पर निकला करेंगी.