क्या आपने कभी सोचा है बैडमिंटन की शटलकॉक में किसका पंख लगा होता है?
बैडमिंटन गेम आप लोगों में से अधिकांश लोगों ने जरूर ही खेला होगा. कुछ लोगों ने बचपन में इस खेल को खेला है, कुछ लोग अच्छी एक्सरसाइज के लिए भी हर उम्र में हर दिन बैडमिंटन खेलते हैं.
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि बैडमिंटन के शटलकॉक में जो पंख लगे होते हैं, वो किस पक्षी के होते हैं. आज हम आपको बैडमिंटन के शटलकॉक के बारे में बताएंगे.
क्रिकेट में जैसे बॉल के बिना मैच का कोई महत्व नहीं होता है. ठीक वैसे ही बैडमिंटन की शटलकॉक के बिना मैच नहीं हो सकता है.
ये दिखने में तो बहुत ही छोटी सी चीज लगती है, लेकिन इसे बनाने का प्रोसेस काफी पेचीदा है. क्योंकि अगर शटलकॉक को बनाते समय एक भी गलती हुई, तो इसका असर खेल पर पड़ता है.
इसीलिए कंपनी द्वारा इसे बनाने के बाद मशीन के जरिए टेस्टिंग भी की जाती है, जिससे यह पता चलता है कि शटलकॉक सही से ग्लाइड होगी या नहीं.
इसे ट्रेडिशनली पंख से बनाया जाता था, लेकिन अब प्लास्टिक का उपयोग भी किया जाता है.
हालांकि, स्टेट, नेशनल, इंटरनेशनल लेवल के खेलों के लिए हमेशा पंखों वाली शटलकॉक ही यूज होती है.
किसी भी शटलकॉक का शेप सही होना जरूरी होता है. क्योंकि तभी ये ठीक से ग्लाइड कर पाएगी. इसलिए कोनिकल शेप को बनाने में बहुत ध्यान दिया जाता है.
बैडमिंटन के लिए सबसे जरूरी शटलकॉक को शुरुआती समय से ही पक्षियों के पंखों से बनाया जाता है. अब सवाल ये है कि किस पक्षी का पंख इसमें इस्तेमाल किया जाता है.
बता दें कि चीन में गूज फेदर्स का प्रयोग किया जाता है और भारत में व्हाइट डक के पंखों का इस्तेमाल किया जाता है
एक छोटी सी बॉल के इर्द-गिर्द स्कर्ट जैसे 16 पंख लगाए जाते हैं, जिन्हें धागे और ग्लू की मदद से जोड़ा जाता है. ये पंख पक्षी के शरीर से नोचे जाते हैं.
आपको सुनकर हैरानी होगी कि ये पंख पक्षियों के शरीर से नोचे जाते हैं, जितनी जरूरत होती है उससे ज्यादा पंख नोचे जाते हैं और उसके बाद इन्हें साफ किया जाता है.
मेकिंग के दौरान जितने उपयोगी योग्य पंख होते हैं, उनसे शटलकॉक बनाई जाती है और जितने सही नहीं होते उन्हें फेंक दिया जाता है.
बता दें कि हमेशा ऐसे पंख इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनका वजन 1.7 ग्राम से 2.1 ग्राम के बीच होना चाहिए, ताकि शटलकॉक आसानी से उड़ सके.