सचिंद्रनाथ सान्याल की कहानी, जिन्हें कहा जाता था क्रांतिकारियों का शिक्षक, अंग्रेजों ने इन्हें 2 बार दी काला पानी की सजा
आपने सचिंद्रनाथ सान्याल का नाम सुना है? वो ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेजी हुकूमत उनकी जिंदगी के आखिरी वक्त तक भी डरती रही थी
सचिंद्रनाथ सान्याल ओडिशा में क्रांतिकारियों के शिक्षक के रूप में मशहूर हुए थे, जिन्होंने देश की आजादी के संघर्ष में अपने प्राणों की आहुति दी थी
सचिंद्रनाथ सान्याल देश में अंग्रेजी हुकूमत की आंखों के कांटे बन चुके थे, खफा हुए अंग्रेजों ने उन्हें दो बार काला पानी की सजा दी
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, सचिंद्रनाथ की अंग्रेजों से 9 सितंबर 1915 को ओडिशा (तब उड़ीसा) के काप्टेवाड़ा में झड़प हुई थी
सितंबर 1915 को सचिंद्रनाथ सान्याल और अंग्रेजों के बीच काप्टेवाड़ा में हुए संघर्ष ने कई क्रांतिकारियों को संदेश देने का काम किया था.
सचिंद्रनाथ कहते थे, "हमें क्रांतिकारी कहा गया. लेकिन, हम तो अपने देश के लिए जान कुर्बान करने वाले साधारण लोग थे.”
आपको बता दें कि सचिंद्रनाथ सान्याल वाराणसी में पैदा हुए थे, उनके जन्म की तारीख 3 अप्रैल 1893 मानी गई है.
साल 1908 में, यानी अपनी पढ़ाई के दौरान ही सचिंद्रनाथ सान्याल ने काशी के पहले क्रांतिकारी दल का गठन किया था, 1913 में वे क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से मिले थे
रासबिहारी बोस सचिंद्रनाथ को प्यार से 'लट्टू' कहते थे. दूसरे क्रांतिकारी उनको 'बारूद से भरा अनार' कहते थे.
26 जून 1915 को सचिंद्रनाथ को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कराया, फिर अगले साल उन्हें फरवरी 2016 में कालापानी की सजा सुनाई गई.
जब वे सजा पूरी कर लौटे तो उनका नाम काकोरी कांड में आया, तब अंग्रेजों ने दोबारा काला पानी की सजा दी. 7 फरवरी 1942 को उन्होंने देश सेवा में ही प्राणों की आहूति दे दी.