क्या श्मशान घाट से आती है महाकाल की आरती के लिए भस्म? यहां पर जानें

पौराणिक कथाओं के अनुसार, दूषण नाम के राक्षस ने उज्जैन में तबाही मचा रखी थी. उसकी तबाही से वहां के ब्राह्मण परेशान थे

सभी ब्राह्मण अपनी समस्या लेकर भगवान शिव के पास गए और उस राक्षस के प्रकोप से बचाने के लिए प्रार्थना की

मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने सभी ब्राह्मणों की प्रार्थना को स्वीकार किया और राक्षस राज दूषण को ऐसा न करने लिए कहा. भगवान शिव के मना करने के बावजूद भी दूषण नहीं माना

दूषण के लगातार बढ़ते प्रकोप से भगवान शिव के भक्त त्राहि-त्राहि हो उठे थे, तब भगवान शिव ने क्रोधित होकर दूषण राक्षस को भस्म कर दिया

भस्म करने के बाद शिव जी ने उस भस्म को अपने पूरे शरीर में लगाकर श्रृंगार किया। तब से लेकर अब तक भगवान शिव का श्रृंगार भस्म से किया जाता है. अब इसे भस्म आरती के नाम से भी जाना जाता है

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज से कई साल पहले महादेव की आरती जिस भस्म से की जाती थी वह श्मशान घाट से लाई जाती थी,

लेकिन अब महाकाल की भस्म आरती करने का तरीका बदल गया है. बता दें कि अब चिता की राख से नहीं बल्कि कई ऐसे तत्व हैं जिससे भस्म तैयार की जाती है

अब आरती की भस्म को पीपल, कपिला गाय के गोबर से बने गोइठा (कंडे) शमी, पलाश की लकड़ी, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर बनाया जाता है

भस्म की आरती होने के बाद भक्तों को प्रसाद के रूप में इसे वितरित भी किया जाता है