छत्तीसगढ़ के बस्तर में गड़वा, गोंड और धुर्वा जनजाति के लोग 4,000 वर्ष पुरानी डोकरा हैंडीक्राफ्ट के जरिए खूबसूरत कलाकृतियां बनाते हैं.

आदिवासियों के ढोकरा आर्ट को छत्तीसगढ़ की शान कहा जाता है. बस्तर में बनाए जाने वाले ढोकरा आर्ट की मूर्तियों की डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है.

डोकरा आर्ट भी पीतल की एक शिल्प कला है. जिसमें पीतल के मदद से कई प्रकार के आकृतियों को तैयार किया जाता है. 

झार क्राफ्ट के द्वारा इन लोगों को ट्रेनिंग देकर पहले डोकरा शिल्प कला सिखाया गया फिर इन्हें रोजगार से जोड़ा गया.

इस आर्ट को बनाने के लिए मिट्टी से ढांचा तैयार किया जाता है और मिट्टी के सूखने पर लाल मिट्टी की लेप लगाई जाती. फिर, इसके ऊपर मॉम के धागे को लपेटा जाता है. 

मूंग के अच्छे तरीके से कड़क हो जाने के बाद इसके ऊपर से दो-तीन मिट्टी से कवर करने के बाद पीतल, टिन, तांबे जैसी धातुओं को पहले हजार डिग्री सेल्सियस पर गर्म कर पिघलाया जाता है.

ऊपर से मिट्टी के लपेटने के समय ध्यान रखा जाता है इसका एक हिस्से में मुंह अवश्य हो ताकि पिघला हुआ पीतल आसानी से इसके अन्दर जाए. 

फिर इसमें पिघला हुआ पीतल इसके मुंह के माध्यम से इसके अंदर डाला जाता है. फिर मोम को पिघलाकर उनमें पिघला हुआ मेटल डाला जाता है.

पीतल ठंडा होने के बाद से मिट्टी से निकलकर इसे पॉलिश कर बाजार में बिकने के लिए भेज दिया जाता है. एक मूर्ति को तैयार करने में 1 माह लगता है.