अंतरिक्ष एक बेहद चैलेंजिंग और खतरनाक जगह मानी जाती है. दुनिया के कई देश एस्ट्रोनॉट्स और स्पेस शिप्स को भेजकर अंतरिक्ष अभियान चलाते रहते हैं. 

लेकिन एस्ट्रोनॉट्स के लिए अंतरिक्ष में रहना आसान काम नहीं है. वहां रहने वाले एस्ट्रोनॉट्स को कई तरह की शारीरिक और मानसिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

अंतरिक्ष में अंतरिक्ष की शून्यता, माइक्रोग्रैविटी और रेडिएशन की वजह से एस्ट्रोनॉट्स को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. जिससे एस्ट्रोनॉट्स के शरीर में काफी परेशानियां पैदा होती है.

अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी की वजह से एस्ट्रोनॉट्स की मांसपेशियों और हड्डियों को नुकसान पहुंचता है और बोन डेनसिटी घटने लगती है. 

पृथ्वी पर ग्रेविटी होती है इस वजह से शरीर के बॉडी फ़्लूइड नार्मली काम करते हैं. लेकिन क्योंकि अंतरिक्ष में ग्रेविटी नहीं होती. 

इस वजह से बॉडी फ़्लूइड ऊपर की ओर आने लगते हैं. और इस वजह से चेहरे पर सूजन और आंखों में प्रेशर बढ़ जाता है. जिससे आंखों को देखने में परेशानी हो सकती है.

अंतरिक्ष में पृथ्वी के एटमॉस्फेयर और मैग्नेटोस्फीयर की सुरक्षा नहीं होती है. जिससे एस्ट्रोनॉट्स को खतरनाक कॉस्मिक किरणें और सोलर फ्लेयर्स का सामना करना पड़ता है.

इन कारणों से रेडिएशन कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है. शारीरिक परेशानियों के अलावा एस्ट्रोनॉट्स को कई तरह के मानसिक चैलेंज से भी जूझना पड़ता है. 

काफी समय तक अंतरिक्ष में रहने से मानसिक तनाव, अकेलापन, और डिप्रेशन जैसी दिक्कतें पैदा हो सकती है. कई बार एस्ट्रोनॉट्स को काफी देर तक अपने परिवार और दोस्तों से दूर रहना पड़ जाता है.

अंतरिक्ष में 24 घंटे की प्राकृतिक दिन-रात नहीं होती. जिससे एस्ट्रोनॉट्स की नींद की क्वालिटी काफी प्रभावित होती है. जिसके चलते उन्हें उन्हें स्लीप डिसऑर्डर का भी सामना करना पड़ता है.