15 की उम्र में शादी 18 में हुईं विधवा, जानें फिर कैसे बनीं भारत की पहली महिला इंजीनियर

ये कहानी उस महिला की है जिसकी शादी 15 साल की उम्र में हो गई. फिर 18 साल की उम्र में जब उसने बेटी को जन्म दिया तो 04 महीने बाद ही पति की मृत्यु हो गई. 

सारी जिंदगी उन्हें मुश्किल भरी लग रही थी. ऐसे में पिता की मदद से उन्होंने फिर पढ़ाई ही शुरू नहीं की बल्कि तब इंजीनिरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया, जब वहां कोई लड़की दिखती ही नहीं थी.

ललिता का पूरा नाम अय्योलासोमायाजुला ललिता था. वह 27 अगस्त 1919 में चेन्नई में पैदा हुईं. मध्यमवर्गीय घर था. पिता इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर. परिवार में तीन बेटे इंजीनियर बने. पिता ने बेटियों को भी पढ़ाया.

ललिता की शादी यद्यपि 15 साल की उम्र में जरूर हुई लेकिन तब तक वह मैट्रिक कर चुकी थीं. शादी के करके जब वो ससुराल गईं तो पहले तीन साल बहुत अच्छे बीते. 

उन्होंने पहली बेटी को जन्म दिया. अचानक फिर पति के मरने की खबर आई. सास उन्हें परेशान करने लगीं. ऐसे में पिता ने बेटी को घर ले आए.

पिता ने तय किया कि बेटी को फिर पढ़ना चाहिए. अपने पैर पर खुद खड़े होना चाहिए. ललिता पढ़ने में बेहद मेघावी स्टूडेंट थीं. उन्होंने इंटरमीडिएट किया. फिर वह डॉक्टर बनना चाहती थीं.

तब तक कई महिलाएं डॉक्टर बन चुकी थीं लेकिन ये पढ़ाई ना केवल ज्यादा समय मांगती बल्कि पेशे में भी जितना समय लगने वाला था, वो उन्हें बेटी से दूर रखता. 

ऐसे में उनके सामने इंजीनियरिंग पढ़ने का विकल्प जरूर था लेकिन ये इतना आसान भी नहीं था. पिता चूंकि चेन्नई के करीब गुंडेई  में इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर थे,  लिहाजा उन्होंने प्रिंसिपल से बात की. 

कॉलेज इसलिए कुछ असमंजस में था कि कॉलेज में कोई लड़की तब तक इंजीनियरिंग नहीं पढ़ रही थी. केवल लड़के ही लड़के थे. खैर उन्हें एडमिशन मिल गया. 

पिता के प्रोफेसर होने के नाते कॉलेज का माहौल पूरी तरह सपोर्ट करने वाला था. उनके लिए एक अलग हास्टल की भी व्यवस्था की गई.

अच्छी बात ये हुई कि एक साल बाद दो और लड़कियां कॉलेज में इंजीनियरिंग पढ़ने आईं. ललिता की बेटी उनके भाई के घर में पाली जाने लगी. 

वह हफ्ते में एक बार रविवार को बेटी से मिलने जाती थीं. पढ़ाई में वो जीजान से लगी रहतीं. 1943 में उन्होंने जब इलैक्ट्रिक इंजीनियरिंग में डिग्री ली तो वह देश की पहली महिला इंजीनियर बन गईं.