पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था. वह बड़ा वीर और पराक्रमी था और उसकी पत्नी अत्यंत पतिव्रता स्त्री थी.
जलंधर को वरदान मिला कि जब तक उसकी पत्नी का सतीत्व नष्ट नहीं हो जाता, वह नहीं मर सकता. जलंधर ने इस आशीर्वाद का घमंड किया और हर जगह हंगामा मचा दिया.
इसी अहंकार में एक दिन उसने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव को मारने का प्रयास किया. उससे परेशान देवता भगवान विष्णु के पास गए और उसे हराने का उपाय पूछा.
भगवान विष्णु से छले जाने तथा पति के वियोग से दुखी वृंदा ने विष्णु को यह शाप दिया था कि अपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा तथा आपको पत्नी वियोग सहना होगा. इसके लिए आपको पृथ्वी पर जन्म लेना होगा.
यह श्राप देने के बाद वृंदा सती हो गई. उस स्थान पर तुलसी का पौधा उग गया. रामावतार में श्राप के कारण सीता हरण होता है और श्रीराम पत्नी वियोग सहन करते हैं.
अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है. अत: तुम पत्थर के बनोगे.
विष्णु बोले, 'हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी. जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा. '
आपको बता दें तब से ही कार्तिक मास में भगवान विष्णु के विग्रह स्वरूप शालीग्राम और तुलसी का पूजा और विवाह किया जाने लगा.