क्या आप जानते हैं दिवाली के भोर महिलाएं सूप क्यों पीटती हैं? जानें इसके पीछे की वजह
दिवाली का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार आस्था से जुड़ी तमाम ऐसी परंपराएं हैं, जिनका आज भी लोग निर्वहन करते आ रहे हैं.
ऐसी ही एक दिवाली के भोर में सूप पीटने की परंपरा है. जी हां, दिवाली के भोर महिलाएं घर के हर कोने में सूप पीटती हैं.
दरवाजे और घर में इसे घुमाते हुए कहती हैं कि, ‘दुख-दरिद्रता बाहर जाए-अन्न-धन लक्ष्मी घर में आएं. बिहार और यूपी के गांवों में मनाने का ये एक अनूठा तरीका है.
कहा जाता है कि, ऐसा करने से दरिद्रता को दूर भगाया जाता है. इसके पीछे की कई और वजह के बारे में ज्योतिषाचार्य राकेश चतुर्वेदी बताएंगे.
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि, गणेश प्रतिमा के पृष्ठ भाग में दरिद्रता का वास होता है. इसी वजह से विद्वान घर के मुख्य दरवाजे पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करने के नियम बताते हैं.
उनका कहना है कि, गणेश प्रतिमा स्थापित करें तो ध्यान रहे कि उनका पृष्ठ भाग (पीछे का हिस्सा) घर की ओर न हो. इसी तरह जब घर में मां लक्ष्मी और गणेश का पूजन होता है तो अलक्ष्मी का भी आवगम होता है.
इस दरिद्रता को भगाने के लिए दिवाली की भोर सूप से ध्वनि की जाती है. ये परंपरा आदि काल से चली आ रही है.
दिवाली की भोर यानी ब्रह्मकाल में सूप पीटने की प्रथा का उद्देश्य घर से दरिद्रता को बाहर निकालकर समृद्धि और वैभव को आमंत्रित करना है.
इस दिन महिलाएं सूप बजाकर ‘दुख-दरिद्रता बाहर जाए-अन्न-धन लक्ष्मी घर में आएं’. कहते हुए पूरे घर में ध्वनि करती हैं. इसके बाद इसे घर के आंगन से निकाल कर दूर तक ले जाती हैं.
इस परंपरा के अंत में सूप और झाड़ू को खेतों या चौराहों पर फेंक दिया जाता है, ताकि नकारात्मकता और गरीबी लौटकर घर न आए.
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि यह परंपरा महिलाओं को पूर्वजों से विरासत में मिली है. यह क्रिया महिलाओं को मानसिक संतोष भी देता है.
क्योंकि, ऐसा करने से उन्हें लगता है कि उन्होंने लक्ष्मी का स्वागत किया है और घर से गरीबी को बाहर निकाल दिया है. उनका विश्वास है कि यह अनुष्ठान घर में धन, वैभव और शांति लाता है.