आखिर क्यों दिवाली पर उल्लुओं की जान पर बढ़ जाता है खतरा? यहां जानें

दीवाली आती है और उल्लू की शामत आ जाती है. रात-रात भर लोग उनकी तलाश में जंगल से लेकर उन ठिकानों में घूमते हैं, जहां उनके होने का अंदेशा होता है. 

अवैध पक्षी बाजार में दीवाली से महीने भर पहले ही उल्लू की डिमांड कुछ जरूरत से ज्यादा ही बढ़ने लगती है. इस काले बाजार में उनकी कीमत 10 रुपए से लेकर 50 हजार तक चली जाती है. 

आखिर क्यों दीवाली से पहले उल्लू की डिमांड बढ़ जाती है. दीवाली की रात अमावस की रात होती है. इस रात बड़े पैमाने पर उल्लू की बलि देने की भी बात कही जाती है.

कुछ हिंदू मान्यताएं कहती हैं कि लक्ष्मी उल्लू की सवारी करती हैं, वहीं कहीं-कहीं इसका भी जिक्र मिलता है कि उलूकराज लक्ष्मी के सिर्फ साथ चलते हैं, सवारी तो वो हाथी की करती हैं. 

बहरहाल, मान्यताएं चाहे जितनी अलग बातें कहें, दीवाली से उल्लुओं का गहरा ताल्लुक जुड़ गया है. माना जाता है कि दीवाली के रोज उल्लू की बलि देने से लक्ष्मीजी हमेशा के लिए घर में बस जाती हैं.

उल्लुओं के धन-समृद्धि से सीधे संबंध या शगुन-अपशगुन को लेकर ढेरों किस्से-कहानियां ग्रीक और एशियन देशों में प्रचलित हैं. 

मुश्किल से मुश्किल हालातों में आखिरी समय तक सर्वाइव कर पाने वाला ये पक्षी अपनी इसी विशेषता के चलते पुराणों के अनुसार तंत्र साधना के लिए सबसे उत्तम माना गया है.

बड़ी-बड़ी आंखों वाला निरीह सा ये पक्षी हिंदू विश्वासों से सीधा जुड़ा हुआ है तो इसकी बड़ी वजह उसकी विशेषताएं हैं. चूंकि ये निशाचर है, एकांतप्रिय है और दिनभर कानों को चुभने वाली आवाज निकालता है. 

इसलिए इसे अलक्ष्मी भी माना जाता है यानी लक्ष्मी की बड़ी बहन, जो दुर्भाग्य की देवी हैं और उन्हीं के साथ जाती हैं जिसके पूर्वजन्मों का हिसाब चुकाया जाना बाकी हो.