आखिर क्यों 'ठेकुआ' के बिना अधूरा है छठ महापर्व और क्या है इसका सूर्य देव से संबंध?

दिवाली के बाद अब बिहार का लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा कल से शुरू होने वाला है. इस साल छठ का पर्व 5 नवंबर से शुरू होकर 8 नवंबर तक चलेगा. 

पटना के मशहूर पंडित शशिभूषण पांडे ने बताया कि असल में छठ पूजा का महाप्रसाद ठेकुआ बड़े ही यम नियम के साथ बनाया जाता है. 

आकर-प्रकार और रंग में ठेकुआ बहुत हद तक सूर्य जैसा दिखता भी है. इसी कारण ठेकुआ को सूर्य का प्रतीक भी माना जाता है.

पंडित शशिभूषण ने बताया कि छठ पूजा में छठी माता को विशेष प्रसाद ठेकुआ चढ़ाया जाता है. छठ पूजा का यह विशेष प्रसाद कई नियमों के साथ बनाया जाता है. 

साथ ही बताया कि ठेकुआ के बिना छठ का ये महापर्व अधूरा माना जाता है. छठ में इसे बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी की व्यवस्था करनी होती है.

पंडित शशिभूषण ने बताया कि ठेकुआ बनाने के लिए गेंहू और गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है. गेंहू और गुड़ से ही ठेकुआ बनाया जाता है. 

महाप्रसाद ठेकुआ बनाने के लिए आटा और गुड़ से आटे को साना जाता है. इसके बाद इसमें कसा हुआ नारियल, थोड़ा घी और इलाइची भी मिलाया जाता है.

पंडित शशिभूषण के मुताबिक, अमूमन ठेकुआ लकड़ी के गोल सांचे में ही तैयार किया जाता है. हालांकि गोल के अलावा ठेकुआ अन्य आकार में भी बनाया जाता है. 

बता दें कि लोग इसके लिए ठेकुए वाले विभिन्न सांचे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके बाद तैयार हुए ठेकुआ को कढ़ाई में हल्की आंच पर पकाया जाता है. हल्का सुनहरा होने तक इसे तला जाता है और फिर निकाल लिया जाता है.