आज के समय में यदि किसी महिला को प्रेग्नेंसी का पता लगाना है तो उसके पास डॉक्टरी इलाज और जांच के अलावा प्रेग्नेंसी किट जैसी कई चीजें मौजूद हैं

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पहले के जमाने में जब प्रेग्नेंसी किट नहीं हुआ करती थी तब गर्भवती होने का पता कैसे लगाया जाता था? चलिए आपको बताते हैं.

प्राचीन मिस्र और रोम में महिलाएं गर्भावस्था का पता लगाने के लिए अपने मूत्र का परीक्षण करती थीं. वो गेहूं और जौ के बीजों को महिला के मूत्र में रखती थीं. 

वहीं अगर गेहूं उगता था, तो इसका मतलब गर्भावस्था नहीं है और अगर जौ उगता था, तो इसका मतलब गर्भावस्था है.

इसके साथ ही Pulse यानी दिल की धड़कन से भी लगाया जाता था. पुराने समय में पल्स परीक्षण के माध्यम से गर्भावस्था का पता लगाया जाता था. 

महिलाएं अपने शरीर में होने वाले बदलावों को देखकर भी गर्भावस्था का अनुमान लगाती थीं. जैसे कि मासिक धर्म का बंद होना, उल्टी, थकान और स्तनों में बदलाव.

भारत में भी प्रेग्नेंसी का पता लगाने के कई पारंपरिक तरीके थे. जैसे यदि कोई महिला गर्भवती है तो उसके यूरीन में गुड़ मिलाया जाए तो उसमें झाग आता था, जिससे पता चलता था कि वो महिला गर्भवती है. 

यदि ऐसा नहीं होता था तो महिला गर्भवती नहीं है. इसके अलावा हल्दी को महिला के मूत्र में मिलाकर उसके रंग में बदलाव देखकर गर्भावस्था का अनुमान लगाया जाता था. 

इसके अलावा कुछ आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का उपयोग करके भी गर्भावस्था का पता लगाया जाता था.