उत्तर प्रदेश में एक ऐसा जिला है, जिसको देश-विदेश में इत्र नगरी के साथ-साथ कई और नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि कन्नौज की हवाएं अपने साथ खुशबू लिए चलती हैं. 

कन्नौज में इत्र के इतिहास की बात की जाए तो यह 5000 साल से ज्यादा पुराना कहा जाता है. इस शहर में इत्र का बड़े स्तर पर कारोबार होता है. 

कन्नौज में इत्र कारोबार कि करीब 200 से अधिक इकाइयां हैं. इनमें ज्यादातर इकाइयों में बड़े पैमाने पर इत्र बनाया जाता है. इत्र बनाने के लिए कई शहरों से यहां पर फूल और लकड़ियां मंगाई जाती हैं.

खास बात यह है कि दुनिया का सबसे महंगा इत्र 'अदरऊद' कन्नौज में ही बनता है. इस एक ग्राम इत्र की कीमत लगभग 5000 रुपये है.

इस इत्र को असम की विशेष लकड़ी आसमाकीट से तैयार किया जाता है. कन्नौज का इत्र पूरी तरह से प्राकृति के गुणों से भरपूर होता है. इसमें अल्कोहल का इस्तेमाल नहीं किया जाता.

कारोबारी बताते हैं कि अदरऊद की बाजार में कीमत 50 लाख रुपये प्रति किलो तक है. वहीं गुलाब से बनने वाला इत्र भी करीब तीन लाख रुपये किलो में बिकता है. 

आपको बता दें केवड़ा, बेला, केसर, कस्तूरी, चमेली, मेंहदी, कदम, गेंदा, शमामा, शमाम-तूल-अंबर, मास्क-अंबर जैसे इत्र भी तैयार किए जाते हैं. यहां बनने वाले इत्र की कीमत 25 रुपए से लेकर लाखों रुपए तक है. 

कहा जाता है कि जब बारिश की बूंदें कन्नौज की मिट्टी पर पड़ती हैं, तो यहां की मिट्टी से भी खास तरह की खुशबू निकलती है. खास बात यह है कि यहां मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है. 

इसके लिए तांबे के बर्तनों में मिट्टी को पकाया जाता है. इसके बाद मिट्टी से निकलने वाली खुशबू को बेस ऑयल के साथ मिलाया जाता है. इस तरह से मिट्टी से इत्र बनाने कि प्रक्रिया चलती है.