देशभर में बड़े धूमधाम के साथ मनाई जाने वाली छोटी और बड़ी दिवाली के बारे में सभी जानते हैं लेकिन क्या आप बूढ़ी दिवाली के बारे में जानते हैं.
जी हां, बूढ़ी दीपावली (Budhi Diwali) भी एक खास पर्व है जो हिमाचल और उत्तराखंड में बेहद प्रसिद्ध है. यह दिवाली दीपावली के 30 दिनों के बाद मनाई जाती है.
इस बार इस बार 12 नवंबर 2024 को बूढ़ी दिवाली मनाई गई थी और इसे बड़ी दीपावली के अमावस्या से अगली अमावस्या को मनाया जाता है.
बूढ़ी दिवाली के खास मौके पर दीपक तो जलाए ही जाते हैं. यहां पटाखे नहीं जलाते हैं बल्कि 3 दिन लगातार रात को मशालें लेकर यह पर्व मनाया जाता है.
पहाड़ की अनूठी परंपरा में स्वांग के साथ परोकड़िया गीत, रासा, नाटियां, विरह गीत भयूरी, हुड़क नृत्य और बढ़ेचू नाच के साथ बूढ़ी दिवाली का जश्न मनाते हैं.
आपको बता दें इस पर्व को 4 से 5 दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है और ट्रेडिशनल डांस के साथ पकवान भी बनाए जाते हैं.
लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि इसे बूढ़ी दिवाली क्यों कहा जाता है और इस परंपरा के पीछे क्या कारण हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर एक महीने बाद पहुंची थी क्योंकि यहां इन दिनों में जबरदस्त बर्फबारी होती है.
तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है और लोग दिवाली की अगली अमावस्या को बूढ़ी दिवाली का पर्व मनाते हैं, जिसे गिरिपार में ‘मशराली’ के नाम से जाना जाता है.