12 हजार मौतें, जब लंदन पर छाए थे दमघोंटू बादल, जानें आज कैसे महज 19 है AQI?

दिल्ली की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के बीच, सरकार द्वारा जल्द ही ऑड और ईवन नियमों की वापसी और घर से काम करने के उपायों पर ठोस कदम उठाए जाने की संभावना है.

राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता रविवार से "गंभीर प्लस" श्रेणी में बनी हुई है. दिल्ली का AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्ट लगातार 450 से ऊपर बना हुआ है.

ये पहली बार नहीं है जब दिल्ली की हवा दमघोंटू बनी है. ये अब लगभग हर साल का ऐसा ही होता है. सर्दियां आते-आते दिल्ली गैस चेंबर बन जाती है.

लेकिन क्या आपको पता है इंग्लैंड की राजधानी लंदन का एक समय इससे भी बुरा हाल था. 12 हजार से ज्यादा लोगों की मौतें हुईं और एक लाख से ज्यादा लोग बीमार पड़े थे.

लेकिन आज उसी लंदन का एयर क्वालिटी इंडेक्स महज 19 है जोकि बेहद अच्छा माना जाता है.

लंदन की घुटनभरी सुबह दिसंबर 1952 में लंदन के इतिहास का सबसे काला अध्याय दर्ज हुआ, जिसे ‘ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन’ (Great Smog of London) के नाम से जाना जाता है.

5 से 9 दिसंबर के बीच, एक घने, जहरीले धुंध ने लंदन को अपनी चपेट में ले लिया। यह धुंध इतनी घनी थी कि लोग कुछ ही फीट दूर तक नहीं देख पा रहे थे.

इसने पूरे शहर को ठप कर दिया—सड़कें सुनसान हो गईं, ट्रेनों और फ्लाइट्स को रद्द कर दिया गया, और अस्पतालों में मरीजों की भीड़ लग गई. प्रमुख कारण और परिणामलंदन में उस समय कोयले का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता था. 

ठंड के मौसम में घरों में हीटिंग के लिए कोयले का धुआं और औद्योगिक प्रदूषण वातावरण में इकट्ठा हो गया. खराब मौसम और हवा की कमी ने इसे और जहरीला बना दिया. 

इस धुंध से 12,000 से अधिक मौतें हुईं, और लगभग 1,00,000 लोग बीमार पड़ गए. ज्यादातर मौतें श्वसन तंत्र की बीमारियों, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस से हुईं.

9 दिसंबर को मौसम बदला, हवा तेज हुई, और स्मॉग धीरे-धीरे छंट गया. लेकिन इस त्रासदी ने लंदन को जागरूक कर दिया. इसके बाद 1956 का क्लीन एयर एक्ट लागू हुआ, जिसमें कोयले के इस्तेमाल पर सख्त पाबंदी लगाई गई और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा दिया गया.