आज से एक दशक पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बिना जानवरों को मारे मांस का उत्पादन किया जा सकता है. 

लेकिन आज विज्ञान ने इस  नामुमकिन लगने वाली चीजों को भी मुमकिन कर के दुनिया को हैरत में डाल दिया है. 

दरअसल प्रयोगशाला में मांस बनाने का विचार 2000 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था. 

इसका पहला बड़ा उदाहरण 2013 में देखने को मिला, जब डच वैज्ञानिक मार्क पोस्ट और उनकी टीम ने दुनिया का पहला कृत्रिम बर्गर तैयार किया. 

यह बर्गर गाय के मांस की कोशिकाओं से बनाया गया था, और इसे लंदन में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में पेश किया गया था. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में हम विस्तार से समझते है कि प्रयोगशाला (Laboratory)में मांस बनने की प्रक्रिया क्या है और भारत में इसे लेकर सरकार की क्या नीति है. 

लैब-ग्रोन मीट, जिसे कल्टिवेटेड मीट या सेल-बेस्ड मीट भी कहा जाता है, वह मांस है जो किसी जीवित जानवर को मारे बिना प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है. 

इसमें जीवित जानवर के स्टेम सेल को बायोरिऐक्टर टैंकों में डाला जाता है जिसके अंदर मानव शरीर जितना तापमान होता है.

टैंकों में बढ़कर यह मांसपेशी, वसा और ऊतक में बदलते हैं। इसके बाद स्कैफोल्डिंग नामक सामग्री में डालकर मांस के लिए ढांचा तैयार किया जाता है. 

भारत में लैब ग्रोन मीट के उत्पादन की कोई आधिकारिक नीति या मान्यता नहीं है, लेकिन इसे भविष्य में खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से एक संभावित विकल्प माना जा रहा है. 

कुछ भारतीय कंपनियां जैसे क्लियर मीट और गौरमेट लैब प्रयोगशाला में बनने वाले मीट का उत्पादन और परीक्षण कर रही हैं, लेकिन यह अभी तक व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं है.