आखिर मौसम विभाग को कैसे पता चलता है कि आगे कितनी ठंड पड़ेगी? यहां पर जानें

मौसम विभाग को ये कैसे पता चलता है कि अगले दो-तीन दिन में कितनी सर्दी पड़ेगी और क्या कोल्ड वेव आएगी? इस सवाल का जवाब कई उपकरणों और तकनीकों में छिपा है.

मौसम विभाग के पास सैटेलाइट इमेजरी, ऑटोमेटेड मौसम स्टेशन (AWS), ड्रोन और वायुमंडलीय मॉडलिंग जैसी तकनीकें होती हैं, जिनकी मदद से सर्दी के स्तर का अनुमान लगाया जाता है.

कोल्ड वेव तब होती है, जब किसी क्षेत्र में तापमान सामान्य से काफी नीचे गिर जाता है और यह 24 घंटे से अधिक समय तक बना रहता है.

कोल्ड वेव के दौरान हवा का दबाव बढ़ता है, जिससे ठंडी हवाएं चलने लगती हैं.

मौसम विभाग इन दबाव प्रणालियों का अध्ययन करता है, क्योंकि यह ठंडी हवाओं को प्रभावित करता है.

जब पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) उत्तर भारत में प्रवेश करता है, तो तापमान में गिरावट आ सकती है और कोल्ड वेव का खतरा बढ़ सकता है.

मौसम विभाग इन विक्षोभों का पूर्वानुमान करता है और इससे जुड़ी सर्दी की स्थिति का भी अनुमान लगाता है.

इन सभी डेटा और तकनीकों के माध्यम से मौसम विभाग दो-तीन दिन पहले सर्दी और कोल्ड वेव का पूर्वानुमान कर पाता है.