उत्तराखंड का नैनीताल जिला अपनी खूबसूरत वादियों और झीलों के लिए फेमस है. यहां दूर-दूर से लोग घूमने के लिए आते हैं. 

कहा जाता है कि नैनीताल में स्वर्ग जैसा अहसास होता है. हालांकि, एक दौर में नैनीताल के आसपास 60 से अधिक झीलें थीं और इस शहर को छकाता (Chhakta) के नाम जाना जाता था. 

लेकिन क्या आप जानते हैं कि कि उत्तराखंड की इस झीलों की नगरी का नाम नैनीताल कैसे पड़ा? अगर नहीं पता तो यहां जान लीजिए. 

मान्यता है कि इस स्थान पर सती की बाईं आंख गिरी थी, जिसके कारण इसका नाम नैन-ताल पड़ा था. 

लेकिन बाद में यह नैनीताल के नाम से जाना जाने लगा. यहां स्थित नैना देवी मंदिर 64 शक्तिपीठों में से एक है. 

नैनीताल का वर्णन स्कंद पुराण के मानस खंड में भी किया गया है. इस जगह को पहले त्री ऋषि सरोवर के नाम से जाना जाता था.

कहा जाता है कि अत्रि, पुलस्थ्य और पुलह नाम के तीन ऋषियों ने यहां तपस्या की थी और यहां एक बड़ा सा गड्ढा बनाकर उसमें कैलाश मानसरोवर का पानी भर दिया था.

मान्यता है कि आज भी नैनी झील में नहाने से मानसरोवर जैसा ही पुण्य मिलता है. इस शहर का प्राचीन और प्रसिद्ध शक्तिपीठ नयना देवी मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख स्थल है.