ये है वो सिल्क की साड़ी जिसकी है दुनियाभर में डिमांड, जानें कैसे की जाती है तैयार
भारतीय संस्कृति में साड़ी की एक खास जगह है और ये दुनिया में पांचवा सबसे ज्यादा पहना जाने वाला परिधान (apparel) है.
भारत के अलग-अलग राज्यों में कई प्रकार की साड़ियां मिलती हैं, जिनमें कांजीवरम, कलमकारी, बनारसी, चंदेरी, माहेश्वरी और कोसा साड़ी प्रमुख हैं.
ऐसे में आज हम छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से अंतरराष्ट्रीय बाजार तक अपनी पहचान बनाने वाली कोसा साड़ी के बारे में जानेंगे.
कोसा साड़ी को इसके नरम कपड़े और खास टेक्सचर के लिए जाना जाता है. यह साड़ी छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के लगभग हर गांव में बनाई जाती है.
कोसा साड़ी बनाने की प्रक्रिया में रेशम के कीड़े का कोकून अर्जुन के पेड़ में बनता है, जिसे उबाल कर धागा तैयार किया जाता है.
इस धागे को सुखाकर विविंग (बुनाई) किया जाता है, फिर इसे डिजाइन कर ब्लॉक प्रिंट और कलमकारी जैसे रंग-रूप दिए जाते हैं.
साड़ी बनाने में 7 से 8 दिन का समय लगता है और इसमें 2 से 3 कारीगरों की जरूरत होती है.
कई लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को करते आ रहे हैं और इसमें महिलाएं भी मुख्य भूमिका निभाती हैं. कोकून की कीमत 7 से 8 रुपये होती है, जो नर्सरी में उगाए जाते हैं और जंगलों में भी मिलते हैं.
कोसा साड़ी की कीमत 4 हजार रुपये से शुरू होकर 25 हजार रुपये तक जा सकती है और यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अच्छी कीमत पर बिकती है.
इस साड़ी का इतिहास वेदों में मिलता है, जहां यज्ञ और हवन के समय इसे पहनने का उल्लेख है. इसके अलावा महाभारत में भी इसका उल्लेख है.