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दिल्ली हाई कोर्ट ने बाल हिरासत केस स्थानांतरण याचिका खारिज की, वादी पर ₹5,000 का जुर्माना

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में पक्षपात के निंदनीय आधार पर एक पारिवारिक न्यायालय से दूसरे में बाल हिरासत मामले को स्थानांतरित करने की मांग करने वाले एक वादी पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया है.

delhi high court

दिल्ली हाईकोर्ट.

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में पक्षपात के निंदनीय आधार पर एक पारिवारिक न्यायालय से दूसरे में बाल हिरासत मामले को स्थानांतरित करने की मांग करने वाले एक वादी पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. अलालत ने इसे न्यायालय के अधिकार को कम करने का प्रयास करार दिया. जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा ने स्थानांतरण याचिका को खारिज कर दिया, और कहा कि महिला चाहती तो न्यायाधीश पर पक्षपात का आरोप लगाने के बजाय न्यायिक पक्ष में ट्रायल कोर्ट के हिरासत आदेश को चुनौती दे सकती थी. इस तरह के आधार पर स्थानांतरण केवल निंदनीय है और न्यायालय के अधिकार को कम करने के इरादे से किया गया है.

एक पारिवारिक अदालत ने पहले बच्चे के पिता को महीने में दो बार अदालत परिसर में बच्चों के कमरे में बच्चे से मिलने के लिए सीमित मुलाकात के अधिकार की अनुमति दी थी. मां ने आरोप लगाया कि पिता ने इस तरह की मुलाकात के दौरान बच्चे का यौन उत्पीड़न किया. उन्होंने इस मामले में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत मामला भी दर्ज कराया. हालांकि, बाद में पिता को पोक्सो मामले में बरी कर दिया गया.

मां ने कहा कि इस बरी होने के बाद पारिवारिक अदालत ने खुद सुझाव दिया कि पिता बच्चे की अस्थायी हिरासत के लिए आवेदन दायर कर सकता है. मां ने दावा किया कि यह पारिवारिक अदालत की ओर से पक्षपात का संकेत देता है. इसलिए, उन्होंने मामले को दूसरे पारिवारिक अदालत के न्यायाधीश को स्थानांतरित करने की मांग की.

इस स्थानांतरण याचिका को पिछले साल नवंबर में द्वारका में पारिवारिक अदालतों के प्रधान न्यायाधीश ने खारिज कर दिया था. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि भले ही यह स्वीकार कर लिया जाए कि परिवार न्यायालय के न्यायाधीश ने बच्चे के पिता को हिरासत के लिए आवेदन दाखिल करने के लिए निर्देशित किया था, लेकिन इससे निचली अदालत के न्यायाधीश की ओर से कोई पक्षपात स्थापित नहीं होगा. इस के बाद बच्चे की मां को दिल्ली उच्च न्यायालय का में याचिका दायर की.


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-भारत एक्सप्रेस



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