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अडानी-हिंडनबर्ग की गाथा में सिर्फ अडानी नहीं देश का भविष्य दांव पर

सोचने लायक बात ये भी है कि अगर अडानी समूह अपनी निर्माणाधीन परियोजनाओं को समय पर पूरा नहीं कर पाता है तो क्या होगा? इसका खामियाज़ा भारतीय अर्थव्यवस्था को भुगतना होगा।

February 6, 2023
Adani-hindenburg

अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी

अडानी-हिंडनबर्ग की गाथा में सिर्फ अडानी नहीं देश का भविष्य दांव पर लगा है। ये बेहद अफसोस की बात होगी अगर हम इस पूरी साजिश की तह तक ना पहुंच पाएं। राजनीति अपनी जगह है लेकिन राष्ट्रहित से ऊपर कुछ नहीं हो सकता। हिंडनबर्ग रिपोर्ट को सिर्फ अडानी और उनके कारोबारी साम्राज्य के सीमित संदर्भ में देखना गलत होगा। यहां सवाल भारत की विकास यात्रा के भविष्य का भी जुड़ा है। ये कहना नाजायज नहीं होगा कि गौतम अडानी का हश्र भारत के बुनियादी ढांचे के विकास की गति पर भी असर रखता है। इस बात को समझने के लिए जरा अडानी समूह की परियोजनाओं पर नजर डालें।

देश के कुछ सबसे अहम बंदरगाहों को चलाने का जिम्मा इसी समूह के पास है। इन 13 बंदरगाहों और टर्मिनल्स से लगभग 330 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) माल की ढुलाई होती है। अडानी समूह ने इस मात्रा को साल 2025 तक 550 एमएमटी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। ऐसा होने के बाद ये समूह दुनिया में बंदरगाह चलाने वाली सबसे बड़ी निजी कंपनियों को टक्कर देने की हालत में होगी। इनमें चीनी कंपनियां खास तौर पर शामिल हैं।

अडानी समूह इस पूरे क्षेत्र में समुद्री कारोबार को बढ़ाने की महत्त्वाकांक्षा के लिए भी अहम है। केरल में भारत के पहले गहरे पानी के बंदरगाह को बनाने का बीड़ा इसी समूह ने उठाया है। इस बंदरगाह में बड़े आकार के समुद्री जहाज़ों के लंगर डाल सकेंगे। उम्मीद है कि पूरा हो जाने के बाद ये बंदरगाह कोलंबो के अलावा (श्रीलंका), सिंगापुर और मलेशिया के क्लैंग और तानजुंग पैलापास बंदरगाहों से होने वाले कारोबार के बड़े हिस्से को भी अपनी ओर खींचेगा। पड़ोसी देशों को तरजीह देने की भारत की विदेश नीति के तहत अडानी समूह श्रीलंका में भी बंदरगाह का निर्माण कर रहा है। इसके अलावा समूह ने हाल ही में इजरायल में भी एक अहम बंदरगाह का अधिग्रहण करके भूमध्य सागर में चीन के वर्चस्व को चुनौती दी है।

भारत में पैदा होने वाले कुल अनाज का 30 प्रतिशत अडानी के अन्न भंडारों में जमा होता है। देश में बिजली की लाइनों का लगभग पांचवां हिस्सा, कुल हवाई यातायात का एक चौथाई भाग और कुल सीमेंट उत्पादन का भी पांचवां हिस्सा अडानी समूह की देखरेख में ही है। पिछले वित्तीय वर्ष में अडानी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों की कुल कमाई लगभग 25 बिलियन डॉलर थी। ये रकम भारत के कुल जीडीपी का तकरीबन 0.7 फीसदी है। इन कंपनियों का कुल मुनाफा 1.8 बिलियन डॉलर और सालाना खर्च 5 बिलियन डॉलर था। ये भारत की 500 सबसे बड़ी गैर-वित्तीय कंपनियों के कुल जमा खर्च का लगभग 7 प्रतिशत है।

अनुमान है कि साल 2023 और 2027 के बीच अडानी समूह 50 बिलियन डॉलर का निवेश करने जा रहा है। कंपनी की कुछ अहम भावी योजनाओं में मुंबई के पास हवाई अड्डे का निर्माण, तीन नए समुद्री बंदरगाह और पॉस्को कंपनी के साथ साझेदारी में 5 बिलियन डॉलर की लागत वाले इस्पात कारखाने का निर्माण शामिल है। इसके अलावा अडानी ग्रुप गैर-परंपरागत ऊर्जा, खासकर हाइड्रोजन ऊर्जा के दोहन में भी अग्रणी काम कर रहा है। ये देश को साफ ऊर्जा की ओर ले जाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने के अनुरूप ही है। लेकिन इन सभी कामों के लिए पैसा चाहिए। इस पैसे में से कुछ कंपनी की ओर से शेयर बाज़ार में जारी किए गए फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) के जरिए जुटाया जाना था। हिंडनबर्ग रिपोर्ट का असल मकसद इसी एफपीओ को डुबोना था।

रिपोर्ट के चलते बाजार में अडानी समूह की कंपनियों के शेयरों का भाव गिरा है। इसके चलते कम से कम अगले कुछ समय तक कंपनी के लिए बाजार से पैसा जुटाना मुश्किल होगा। इसका असर भारत के बाकी कारोबारी क्षेत्र पर भी पड़ने की आशंका है। ये हिंडनबर्ग रिपोर्ट का ही असर था कि 27 से 30 जनवरी के बीच वैश्विक फंडों ने भारतीय शेयर बाजार से 1.5 बिलियन डॉलर खींच लिए। दो सालों में ये पहला मौका था जब भारतीय बाज़ार में दुनिया की बाकी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले मंदी देखी गई।अगर विदेशी संस्थागत निवेशक भारत से किनारा करते हैं तो इसका असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।

सोचने लायक बात ये भी है कि अगर अडानी समूह अपनी निर्माणाधीन परियोजनाओं को समय पर पूरा नहीं कर पाता है तो क्या होगा? इसका खामियाज़ा भारतीय अर्थव्यवस्था को भुगतना होगा। बंदरगाह, हवाई अड्डे, राजमार्ग, ऊर्जा संयंत्र और बिजली वितरण की व्यवस्था देश की तरक्की की धमनियों जैसे हैं। लगभग सभी उद्योग और सैक्टर इस बुनियादी ढांचे पर टिके हैं। 90 और साल 2000 के दशक में चीन इतनी तेजी से तरक्की इसीलिए कर पाया था क्योंकि वहां बुनियादी ढांचे में भारी निवेश हुआ था। भारत की सरकारी व्यवस्था चीन के सिस्टम जितनी कारगर नहीं है। इसलिए हमें बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अडानी जैसे निजी उद्यमों पर भी निर्भर रहना होगा। बड़ी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने का अडानी समूह का रिकॉर्ड शानदार है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के पीछे लगे दिमाग इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि अडानी समूह की तरक्की में अड़ंगा लगाने का मतलब है भारत के विकास की रफ्तार को कुंद करना।

-भारत एक्सप्रेस

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