Akshay Tritiya: आज ही के दिन भगवान ने लिया था पृथ्वी पर परशुराम अवतार, जानिए- सात चिरंजीवियों में क्यों आता है इनका नाम?

भविष्य पुराण में बतलाया गया है कि लाखों वर्ष पहले अक्षय तृतीया को ही त्रेता युग की शुरुआत हुई थी.

उस युग में जब हैहय वंशज पृथ्वी पर अन्य मनुष्य-जातियों को तंग कर रहे थे, धर्म की क्षति हो रही थी. तब ऋषि जमदग्नि के यहां परशुराम ने जन्म लिया.

पुराणों में उल्लेख है कि- 1000 हाथों वाले क्षत्रिय राजा कार्तवीर्यार्जुन ने जमदग्नि ऋषि के आश्रम पर आकर अत्याचार किए थे, उनसे दिव्य गाय छीन ले गया.

जब परशुराम बाहर से वापस माता-पिता के पास आश्रम पर लौटे तो उनकी क्रोधाग्नि भभक उठी..वो राजा कार्तवीर्यार्जुन को दंडित करने निकल पड़े.

परशुराम ने कार्तवीर्यार्जुन (जिसे हजार भुजाओं के कारण 'सहस्त्रबाहु अर्जुन' कहा जाता था) को अपने फरसे से काटकर मंत्री-संत्रियों समेत मार डाला.

इस घटना का प्रतिशोध लेने के लिए सहस्त्रबाहु अर्जुन के पुत्रों ने बाद में जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी, अपने निर्दोष पिता की हत्या से व्यथित परशुराम ने तब कार्तिवीर्य के पुत्रों को उनके परिचितों-अनुयायियों समेत मारा.

यहां तक कि परशुराम ने हैहय वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी जन्म लेने वालों का भी विनाश किया, कहते हैं कि ऐसा 21 दफा किया, पृथ्वी पर क्षत्रियों का अकाल पड़ गया.

पौराणिक मान्यता है कि परशुराम चिरंजीवी हैं, उनका नाम सप्त चिरंजीवियों में आता है, यानी वे अभी भी जीवित हैं, और कलयुग के अंत में पृथ्वी पर वापसी करेंगे.

अक्षय तृतीया ही वह दिन था, जब रावण के बड़े (सौतेले भी) भाई कुबेर की पूजा-याचना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें देवताओं का खजांची होने का दायित्व सौंपा.

द्वापर युग में (लगभग साढ़े 5 हजार साल पहले) पांडव जब वनवास में थे, तो युधिष्ठिर ने भगवान सूर्य की आराधना की, उनसे अ‌‌क्षय पात्र मिला, जिसमें खाना अपने आप पकता था और खत्म नहीं होता था. आज भी मिड डे मील की सरकारी गाड़ियां उसी नाम पर चलती हैं.