ब्रह्मविहारी स्वामी ने 2012 में अक्षरधाम की वास्तुकला को अंतिम रूप दिया और 2014 में रॉबिन्सविले में इसका भूमिपूजन किया
इस मंदिर को बनाने का काम साल 2023 तक चला. यहां भारतीय संस्कृति, भारतीय कला और भारतीय अध्यात्म का त्रिवेणी संगम है.
इसे हजारों साल पुराने वास्तु शास्त्र के हिसाब से बनाया गया है. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो बीच में बेल्ट पर भरतनाट्यम मुद्रा बनी हुई है.
यह मंदिर अपने आप में भारत की आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक है, अक्षरधाम के बीच के मध्य मार्ग को वैदिक पथ कहा जाता है.
किसी मंदिर में ऐसा पहली बार हुआ है, जहां वेदों के चार रूप मिलते हैं. यह वास्तव में शाश्वत जागरुकता का पुनर्जागरण है.