क्या आप जानते हैं शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग के बीच क्या है अंतर?
शिव पुराण में बताया गया है कि शिवलिंग भगवान शिव का स्वरूप है. इस ग्रंथ के अनुसार, शिवलिंग में भोलेनाथ का सारा परिवार विराजमान है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग की नियमित रूप से पूजा करने से जातक के जीवन में आ रही हर तरह की समस्या का समाधान होता है.
बहुत से लोग शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग को एक ही समझते हैं, लेकिन दोनों में बहुत अंतर है. जिसके बारे में भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य पंडित योगेश चौरे ने जानकारी दी है.
शिव पुराण के अनुसार, शिवलिंग का अर्थ अनंत है यानी जिसकी न कोई शुरुआत है और न ही कोई अंत.
शिवलिंग को भगवान शिव और माता पार्वती के आदि-अनादि का एकल स्वरूप माना गया है, जहां लिंग का मतलब प्रतीक से है.
यानी भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग है. भगवान शिव के प्रतीक के रूप में शिवलिंग का निर्माण मनुष्य ने पूजा-पाठ और प्राण प्रतिष्ठा कर घर में स्थापित करने के लिए किया है.
वहीं भारत देश में अलग-अलग स्थानों पर कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं. ज्योतिर्लिंग अर्थात भगवान शिव स्वयं उस जगह पर ज्योति के रूप में उत्पन्न हुए थे.
सरल शब्दों में समझा जाए तो उस जगह पर भगवान शिव स्वयंभू यानी स्वयं घटित हुए थे. ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जो 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति अपने जीवन काल में 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन प्राप्त कर लेता है, उसको भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.