आपको मालूम है गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा क्यों की जाती है? जानें इसका महत्व
सनातन धर्म के लोगों के लिए प्रत्येक त्योहार का विशेष महत्व है. हर एक पर्व को सेलिब्रेट करने के पीछे की वजह और परंपराएं एक दूसरे से भिन्न हैं.
दिवाली के पर्व को हिंदुओं का प्रमुख त्योहार माना जाता है. दिवाली को पंचपर्व भी कहा जाता है, क्योंकि ये उत्सव पांच दिनों तक मनाया जाता है.
धनतेरस से दिवाली का आरंभ होता है, जिसका समापन भाई दूज के साथ होता है. भाई दूज से पहले गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गोवर्धन पूजा के दिन गायों और भगवान कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
साथ ही गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा और श्री कृष्ण व गोवर्धन भगवान को छप्पन भोग लगाया जाता है. चलिए जानते हैं गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने का महत्व और लाभ के बारे में.
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार गोवर्धन पूजा की तिथि का आरंभ 1 नवंबर 2024 को शाम 6:16 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन अगले दिन 2 नवंबर 2024 को रात 8:21 मिनट पर होगा.
उदयातिथि के आधार पर 2 नवंबर 2024 को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 5:34 मिनट से लेकर सुबह 8:46 मिनट तक है.
उत्तर प्रदेश में मौजूद वृंदावन से 22 किमी दूर गोवर्धन पर्वत स्थित है, जिसे गिरिराज जी भी कहा जाता है.
भगवत गीता के अनुसार, गोवर्धन महाराज को श्री कृष्ण का एक प्रतिरूप माना जाता है. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं.
हालांकि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करना आसान नहीं है. परिक्रमा के दौरान 21 किलोमीटर तक नंगे पैर चलना होता है, जिसमें 10 से 12 घंटे का लंबा समय लगता है.
गोवर्धन की परिक्रमा शुरू करने से पहले एक बर्तन में कच्चा दूध भरा जाता है, जिसमें बारीक छेद किया जाता है. परिक्रमा शुरू करने से लेकर खत्म होने तक बर्तन से दूध धीरे-धीरे निकलता रहता है.
मान्यता है कि गोवर्धन की परिक्रमा इस रस्म के बिना अधूरी होती है. हालांकि कुछ लोग इस रस्म को अपनाते नहीं हैं, बल्कि वो दूध गोवर्धन महाराज पर अर्पित कर देते हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो लोग जीवन में सात बार गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर लेते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.