दुनियाभर में सनातन धर्म के अनुयायी आज विजयादशमी का पर्व मना रहे हैं. इसे देशी भाषा में दशहरा कहते हैं.
विजयादशमी से तात्पर्य है- विजय की दशमी, दरअसल त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का अंत इसी दिन हुआ था..श्रीराम ने उसे मारा था.
तुलसीदास ने दोहा लिखा- खैंचि सरासन श्रवन लगि छाड़े सर एकतीस। रघुनायक सायक चले मानहुँ काल फनीस॥ 102॥ अर्थात् कान तक धनुष को खींचकर श्रीराम ने 31 बाण छोड़े. वे बाण ऐसे चले मानो कालसर्प हों.
सायक एक नाभि सर सोषा। अपर लगे भुज सिर करि रोषा॥ लै सिर बाहु चले नाराचा। सिर भुज हीन रुंड महि नाचा॥ अर्थात् श्रीराम के 1 बाण ने रावण की नाभि के अमृत कुंड को सोख लिया. 30 बाण सिरों और भुजाओं में लगे. सिरों और भुजाओं के बिना रावण का धड़ पृथ्वी पर डोलने लगा.
धरनि धसइ धर धाव प्रचंडा। तब सर हति प्रभु कृत दुइ खंडा॥ गर्जेउ मरत घोर रव भारी। कहाँ रामु रन हतौं पचारी॥ अर्थात् रावण के धड़ से धरती हिलने लगी. तब श्रीराम ने और बाण मारकर उसके दो टुकड़े कर दिए. मरते समय रावण ने 'राम' नाम लिया.
तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' के अनुसार, रावण के मरने पर उसका तेज श्रीराम के मुख में समा गया. यह देख शिव और ब्रह्मा हर्षित हुए.