हिमाचल प्रदेश की राज्यसभा सीट पर हुए चुनाव पर खड़ा हुआ सियासी विवाद अब भी जारी है.  

कांग्रेस के दिग्गज नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मामले पर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

उन्होंने सीट पर बराबर की वोटिंग के बाद पर्ची सिस्टम से निकाले गए नतीजों को चुनौती दी है. उनका कहना है कि लॉटरी में उनके नाम की पर्ची निकलने के बाद भी वो हार गए, जो गलत है. 

इस कड़ी में आइए समझते हैं लोकसभा और राज्यसभा चुनावों के लॉटरी सिस्टम में क्या अंतर होता है?

क्या होता है लॉटरी सिस्टम? चुनाव में जब दो कैंडिडेट्स को बराबर के वोट मिलते हैं, तो चुनाव संचालन नियमों में लॉटरी निकालने का प्रावधान है.

यह नियम लोकसभा और राज्यसभा दोनों चुनावों के लिए लागू होता है.  हालांकि, इन दोनों में लॉटरी निकालने और विजेता घोषित करने में एक बड़ा अंतर होता है.

पहले बात करते हैं राज्यसभा चुनाव के लॉटरी सिस्टम की. चुनाव संचालन नियमावली 1961 के सेक्शन 75 (4) के तहत चुनाव में दो लोगों को समान वोट मिलने पर लॉटरी यानी पर्ची से हार जीत का फैसला किया जाता है.

ऐसी स्थिति में उम्मीदवारों के नाम वाली पर्चियों को एक बॉक्स में रखा जाता है.  फिर बॉक्स को हिलाने के बाद, रिटर्निंग ऑफिसर उसमें से एक पर्ची निकालता है. 

जिस भी उम्मीदवार के नाम की पर्ची निकलती है, वह चुनाव हार जाता है. इस तरह जिसकी पर्ची बॉक्स में रह जाती है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है..

लॉटरी से कैसे तय होता है विजेता? लोकसभा चुनाव में बराबरी की स्थिति में चुनाव संचालन नियम, 1961 के रूल 81 के तहत फैसला होता है.

इसमें भी ड्रा ऑफ लॉट्स सिस्टम से विजेता घोषित होता है. हालांकि, इसमें एक बड़ा अंतर होता है. एक तरफ जहां राज्यसभा में पर्ची पर नाम आने पर उम्मीदवार हार जाता है.

वहीं दूसरी तरफ, लोकसभा की लॉटरी में जिस उम्मीदवार का नाम निकलता है, वो चुनाव जीत जाता है.