चेन्नई के एक रूढ़िवादी परिवार में जन्मीं उमा मणि की ज्यादा महत्वाकांक्षाएं नहीं थीं. मद्रास यूनिवर्सिटी से हायर एजुकेशन हासिल करने के बाद उनकी शादी हो गई.
बचपन से ही उन्हें पेंटिंग बनाने में दिलचस्पी थी, लेकिन उन्हें पेंटिंग सीखने का कभी मौका ही नहीं मिला. उन्हें ऐसा माहौल ही नहीं मिला जो उनके शौक को बढ़ावा देता. शादी के बाद वे एक हाउसवाइफ की जिंदगी जीने लगीं.
वह बच्चों को घर पर ही ट्यूशन पढ़ाया करती थीं. हालांकि इस दौरान उन्हें ये जरूर महसूस होता था कि करिअर पर ध्यान देना चाहिए था या पीएचडी करनी चाहिए थी. उमा इन दिनों तमिलनाडु के डिंडीगुल में रह रही हैं.
45 की उम्र में उमा की पेंटिंग में फिर से दिलचस्पी जगी. उन्होंने पेंटिंग करना शुरू कर दिया. इस बीच उन्होंने समुद्र में मिलने वाले कोरल रीफ को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री देखी, जिससे वे काफी प्रभावित हुईं.
इसके बाद उन्होंने कोरल रीफ की पेंटिंग शुरू कर दी और इन पेंटिंग्स की वो प्रदर्शनी भी लगाने लगीं. एक बार जब वह कोरल रीफ पर प्रदूषण के प्रभाव पर बात कर रही थीं, तब उनके एक चचेरे भाई ने उनका मजाक उड़ाया.
इस घटना ने समुद्री जीवन को जानने और गोता लगाने के लिए उमा को प्रेरित किया. फिर उन्होंने गोताखोर (Diver) बनने के लिए तैराकी शुरू की. परिवारवालों ने उनका सपोर्ट किया.
उस साल उनकी शादी की 25वीं सालगिरह थीं. जब प्रेजेंट के तौर पर उनके बेटे ने उनके कोर्स की फीस भर दी और उन्हें गोताखोरी सीखने के लिए प्रोत्साहित किया. समय बीतने के साथ उमा की कोरल रीफ में रुचि धीरे-धीरे गहरी होती चली गई.
कोरल रीफ्स को सबसे महत्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक माना जाता है. ये खतरनाक दर से मर रहे हैं. इसे देखते हुए उमा समुद्री जीवन को हो रहे नुकसान के बारे में जागरूकता फैलाने की मुहिम से जुड़ गईं.
इस कड़ी में उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर Priya Thuvassery से मुलाकात की और जागरूकता बढ़ाने के लिए एक फिल्म बनाने का आग्रह किया.
2019 में उनकी पुरस्कार विजेता डॉक्यूमेंट्री ‘कोरल वुमन’ रिलीज हुई, जिसमें उमा की समुद्री जीवन को हो रहे नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाने की यात्रा को दिखाया गया है.
कोरल रीफ सैकड़ों से लेकर हजारों छोटे-छोटे कोरल की कॉलोनियों से बने होते हैं, जिन्हें पॉलीप्स कहा जाता है. ये समुद्र के अंदर का एक पारिस्थितिकी तंत्र है.
ये तूफानों और कटाव से तटरेखाओं की रक्षा करते हैं. स्थानीय समुदायों को रोजगार प्रदान करते हैं. ये भोजन और नई दवाओं का स्रोत भी हैं.