क्या आप जानते हैं अघोरी साधु और नागा साधु में क्या अंतर होता है? यहां जानें

प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में दुनियाभर से एक से बढ़कर एक साधु-संत आए हुई हैं. लेकिन इस मेले में नागा साधु लोगों में चर्चा का विषय बने हुए है. 

नागा साधु हमेशा कुंभ में जरूर आते हैं और यहां स्नान करते हैं. वह नियमित तौर पर कुंभ में स्नान करते हैं ये उनके लिए हर 6 से 12 साल पर आने वाले पवित्र अवसर होता है. 

लेकिन क्या आप जानते हैं अघोरी साधु और नागा साधु के बीच क्या अंतर होता है? चलिए हम आपको बताते हैं. 

बता दें कि नागा साधु और अघोरी बाबा के पहनावे से लेकर इनके रहन-सहन, तप करने के तरीके और साधु बनने की प्रक्रिया में काफी अंतर होता है.

नागा साधु आदि शंकराचार्य को जबकि अघोरी साधु भगवान दत्तात्रेय को गुरु मानते हैं.

अघोरी श्मशान, नदियों के किनारे या भारत-नेपाल के घने जंगलों में रहते हैं जबकि नागा साधु जंगलों, सुनसान मंदिरों या हिमालय के ऊपरी इलाकों में रहते हैं.

नागा साधु योग अभ्यास जबकि अघोरी तंत्र-मंत्र का अभ्यास करते हैं. नागा साधु शाकाहारी जबकि अघोरी मांस खाते हैं. 

नागा साधुओं की नियुक्ति एक प्रक्रिया और कड़े प्रशिक्षण के बाद होती है. एक नागा साधु बनने में 12 साल तो लग ही जाते हैं. वो संपत्ति और सुख-सुविधा का पूरी तरह त्याग कर देते हैं. 

नागा बाबा शरीर पर भस्म लपेटते हैं, जटा होती है, त्रिशुल रखते हैं तो नग्न रहते हैं. जबकि हर अघोरी अलग अकेले साधना करता है तो नागा बाबा संगठित समूहों में रहते हैं.

अघोरी खुद को पूरी तरह से शिव में लीन करना चाहते हैं. शिव के पांच रूपों में से एक रूप 'अघोर' है. शिव की उपासना करने के लिए ये अघोरी शव पर बैठकर साधना करते हैं.