अयोध्या में मंदिर तोड़ के बाबरी मस्जिद की बात कहने वाली किताब AMU से हुई गायब

देश में व्याप्त तमाम चुनौतियों के बीच वो एक ऐसे विवाद को सुलझाने में उलझे थे जो सैकड़ों सालों से उलझा पड़ा था. रामजन्मभूमि विवादित ढांचा केस.

विश्व हिंदू परिषद ने उनको चार महीने का अल्टीमेटम दे रखा था साथ ही बातचीत में विहिप कोर्ट का फैसला मानने की बात से इनकार कर चुकी थी. 

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी से एक ऐसी किताब गायब हो गई है जिसमें अयोध्या में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात कही गई है.

अयोध्या को लेकर ऐसे कई सवाल हैं. जिनके जवाब मिलते हैं अयोध्या आंदोलन से जुड़ी खास किताब में, जिसका नाम है ‘युद्ध में अयोध्या’.

किताब में लिखा है कि वी.पी. सिंह के मुताबिक उनके हां कहने पर दोनों लोग कांचीपुरम के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती और मुस्लिम स्कॉलर अली मियां से मिले. 

वे लोग काफी आगे बढ़ गए. कांचीपुरम के शंकराचार्य और अली मियां इस नतीजे पर पहुंचे थे कि हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों की एक समिति बना दी जाए. 

इस समिति की सिफारिश को सरकार लागू करवाए. ‘अली मियां’ यानी मौलाना अबुल हसन अली नदवी इस्लामी परंपरा के अंतरराष्ट्रीय विद्वान थे. वे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष भी थे.

उन्होंने एक किताब भी अरबी में लिखी थी, ‘हिंदुस्तान इस्लामी अहमदे’. अली मियां ने इसका उर्दू अनुवाद किया था. 

इसी किताब में मौलाना ने हिंदुस्तान में जो सात मस्जिदें मंदिर तोड़कर बनाई गईं, उनका जिक्र किया था. जिसमें एक बाबरी मस्जिद भी थी. 

इस किताब में ‘हिंदुस्तान की मस्जिदें’ अध्याय में बाबरी मस्जिद के बाबत कहा गया था, ‘इसकी तामीर बाबर ने अयोध्या में की. जिसे हिंदू रामचंद्र जी का जन्मस्थान कहते हैं. 

किताब के मुताबिक, इंडियन एक्सप्रेस के तब के संपादक अरुण शौरी को किसी ने उस वक्त इस किताब का संदर्भ दिया. 

उस समय इस बात पर विवाद हो रहा था कि बाबरी मस्जिद एक मंदिर तोड़कर बनाई गई या बाबरी मस्जिद से पहले वहां कोई अन्य धार्मिक ढांचा था. 

अरुण शौरी पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष अली मियां के पिता की किताब से सबूत तो ले आए, पर उन्हें किताब नहीं मिली. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में किताब थी.