ये है दुनिया का सबसे लंबा और सबसे धीमा वैज्ञानिक रिसर्च, गिनीज बुक में दर्ज है नाम
विज्ञान में प्रयोगों का बहुत महत्व कई प्रयोग बहुत धैर्य की मांग करते हैं क्योंकि वे लंबे चलते हैं. ऐसा ही कुछ लंबे अवलोकनों के साथ भी होता है.
लेकिन इंसानों के काबू में चल रहा कोई प्रयोग आखिर कितना लंबा चल सकता है? क्या आप यकीन करेंगे कि एक प्रयोग ऐसा भी है जो करीब 100 सालों से चल रहा है और अभी खत्म नहीं हुआ है.
यह दुनिया का सबसे धीमे प्रयोग के तौर पर जाना जाता है. इसमें एक पदार्थ की बूंदे बहुत ही धीमी गति से गिर रही हैं और अब केवल 9 बूंदे गिरी है.
यह खास प्रयोग ऑस्ट्रेलिया के भौतिकविद थॉमस पार्नेल ने साल 1930 में शुरू किया था जो रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों की चौंकाने वाले गुण दिखाना चाहते थे.
इस प्रयोग में उन्होंने पिच ड्रॉप एक्सपेरीमेंट के लिए पिच नामक एक अत्यधिक चिपचिपे टार जैसे पदार्थ का इस्तेमाल किया.
यह पानी से 100 बिलियन गुना अधिक चिपचिपा और शहद से दो मिलियन गुना अधिक चिपचिपा होता है.
यह अजीब पदार्थ ठोस प्रतीत होता है लेकिन वास्तव में तरल होता है. हथौड़े से मारने पर यह कांच की तरह टूट भी सकता है.
प्रयोग के हिस्से के रूप में पार्नेल ने पिच को गर्म किया और इसे कांच की फनल में डाला. फिर इसे तीन साल तक ठंडा होने दिया गया.
प्रयोग आखिरकार 1930 में शुरू हुआ जब उन्होंने पिच को धीरे-धीरे टपकने देने के लिए फनल के निचले हिस्से को काट दिया लेकिन बहुत ही धीरे-धीरे.
टपकना हैरान करने की हद तक धीमा है. यह इतना धीमा है कि जब से यह सब शुरू हुआ है, तब से फ़नल से केवल 9 बूंदें ही गिरी हैं.
न तो पार्नेल और न ही प्रोफेसर जॉन मेनस्टोन, जो प्रयोग की देखभाल करने वाले दूसरे वैज्ञानिक थे, कभी भी एक बूंद को गिरते हुए देख पाए.