जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. 

इस भीषण हमले में 26 लोगों की जान चली गई, जबकि कई अन्य गंभीर रूप से घायल हुए हैं. 

हमले के बाद वहां मौजूद चश्मदीदों ने जो बातें बताईं, वो और भी दिल दहला देने वाली हैं. 

कुछ लोगों का कहना है कि आतंकियों ने लोगों से उनका नाम और धर्म पूछा, और फिर उसी आधार पर गोली मारी.

बताया जा रहा है कि जिन लोगों ने खुद को मुस्लिम बताया, उनसे आतंकियों ने "कलमा" पढ़ने को कहा.

जिन्होंने कलमा पढ़ा, उन्हें छोड़ दिया गया, जबकि बाकी लोगों को बेरहमी से निशाना बनाया गया. 

अब आम लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर ये कलमा क्या होता है?

दरअसल, कलमा इस्लाम धर्म की एक अहम बुनियाद है. यह एक तरह की धार्मिक घोषणा या शपथ होती है, जो इस्लाम में प्रवेश करने के लिए अनिवार्य मानी जाती है

इसका अर्थ होता है — "अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं है और मोहम्मद (स.अ.) उनके रसूल हैं." 

मुस्लिम समुदाय में कलमा को बचपन में ही तर्जुमा (मायने) के साथ सबको पढ़ा दिया जाता है. रोजाना की नमाज़ और दुआओं में  भी इसका जिक्र किया जाता है.