गया में क्यों किया जाता है पूर्वजों का पिंडदान, जानें महत्व
देशभर में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर्म और पिंडदान के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन फल्गु नदी के तट पर स्थित गया शहर का अपना विशेष महत्व है.
कहा जाता है कि गयाजी में पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करने के बाद कुछ भी बाकी नहीं रह जाता है. मान्यतानुसार, यहां पर श्राद्ध करने पर व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है.
गया के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां स्थित फल्गु नदी के किनारे भगवान श्रीराम और माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म किया था.
कहते हैं महाभारत काल में पांडवों ने भी गया जी में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्धकर्म किया था. ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो सके.
विष्णु पुराण, गरुड़ पुराण और वायु पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि गयाजी में किए गए श्राद्ध कर्म और पिंडदान से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है. इसलिए गया को मोक्ष की भूमि यानी मोक्ष स्थली कहा गया है.
विष्णु पुराण, गरुड़ पुराण और वायु पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि गयाजी में किए गए श्राद्ध कर्म और पिंडदान से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है. इसलिए गया को मोक्ष की भूमि यानी मोक्ष स्थली कहा गया है.
कहते हैं कि गयासुर के पुण्य के प्रभाव से गया तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्धि हो गया. गया में पहले अनेक नामों से 360 वेदियां थीं लेकिन अब 48 ही शेष बची हैं.
गया में भगवान विष्णु गदाधर रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि गयासुर के विशुद्ध शरीर में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव और प्रपितामह निवास करते हैं. यही वजह है कि पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए गया को उत्तम माना जाता है.