क्या होता है राक्षस और असुर विवाह, जिसका हिंदू धर्म में है जिक्र
ब्रह्म विवाहहिंदू धर्म में इस विवाह को श्रेष्ठ माना गया है. इस तरह के विवाह में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जाता है. यह विवाह वैदिक मंत्रोच्चारण द्वारा संपन्न कराया जाता है
दैव विवाह
दैव विवाह वह होता है जिसमें कन्या का पिता शादी का खर्च उठाने में असमर्थ होता है. ऐसे में वह किसी योग्य व्यक्ति को दान कर देता है. शास्त्रों में इस विवाह को ना करने की सलाह दी गई है.
आर्य विवाह
इस प्रकार के विवाह में वर पक्ष के लोग कन्या पक्ष से शादी के बदले गाय या बैल लेते थे. इस तरह के विवाह में धन का लेन-देन निषेध था.
प्राजापत्य विवाह
इस विवाह में वधु के माता-पिता कन्या की सहमति के बिना कम उम्र में ही उसकी शादी कर देते थे. इस विवाह में कन्या का पिता अपनी बेटी को वर को सौंपने के बजाय पिता को सौंपते थे.
गंधर्व विवाह
इस तरह के विवाह में वर-वधु की सहमति तो होती है मगर परिवार की नहीं. आजकल इस विवाह को प्रेम विवाह की श्रेणी में रखा गया है. राजा दुष्यंत और शकुंतला का विवाह इसी श्रेणी में आता है.
असुर विवाह
इस तरह के विवाह में वर पक्ष की तरफ से कीमत चुकाई जाती है. इस तरह की शादी में एक प्रकार से लड़का खरीदा जाता है. यही वजह है कि इस विवाह को निम्न श्रेणी में रखा गया है.
राक्षस विवाह
जब पुरुष और महिला एक दूसरे को पसंद करे और वर पक्ष वाले इस विवाह के लिए सहमत हो, लेकिन कन्या पक्ष वाले इसके लिए राजी ना हो तो भी अगर शादी हो तो यह राक्षस विवाह की श्रेणी में आता है.
पिशाच विवाह
यह विवाह सबसे निम्म कोटि के अंतर्गत आता है. जब इंसान कन्या की सहमति के बिना धोखा देकर या दुष्कर्म करने के बाद उससे शादी करे तो ऐसा विवाह पिशाच विवाह कहलाता है.