दूसरे चरण के चुनाव के दो दिन पहले बीजेपी और कांग्रेस के बीच मंगलसूत्र के मुद्दे पर जमकर विवाद चल रहा है. 

पीएम मोदी की एक चुनावी रैली से निकलकर मंगलसूत्र इस वक्त चर्चा का विषय बना हुआ है. 

अब सवाल उठता है कि मंगलसूत्र कहां से आया, कब से पहना जा रहा है और इसका पौराणिक महत्व क्या है? आइए जानते हैं.

भारतीय सनातन परंपरा में जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच 16 संस्कारों का विधान है. इन 16 संस्कारों में विवाह संस्कार सबसे खास बना रहा है.

मंगलसूत्र शब्द का जिक्र दक्षिण भारत में बहुत प्रमुखता से मिलता है. वहां विवाह को मंगलकल्याणम कहते हैं. यानी मांगलिक और कल्याणकारी कार्य. .   

मंगलसूत्र के दोनों पेंडेंट शिव-पार्वती का स्वरूप माने जाते हैं. वैदिक परंपराओं का विकास भले ही उत्तर भारत में हुआ, लेकिन उनका जन्म दक्षिण भारत में ही माना जाता है. 

हमारी उत्तर भारतीय विवाह परंपरा की वैदिक रीतियां, मंत्र-ऋचाएं सभी प्राचीन तेलुगू परंपरा से ही निकली हैं, बस लोकाचार में स्थान के आधार पर इनके स्वरूप में थोड़ा बहुत बदलाव है

उत्तर भारत में भी मंगलसूत्र भले ही काले दाने और सोने की माला से बना दिखता है, लेकिन उसके पहनने-पहनाने का तरीका एक ही जैसा है. 

समय के साथ नजर न लगना, बुरी शक्तियों को दूल्हा-दुल्हन से दूर रखना और किसी ऊपरी बाधा आदि से बचाव ने ऐसा प्रभाव डाला कि मंगलसूत्र ने अपना रंग ही बदल लिया. 

उसके मूल में ही वही पीली डोरी शामिल है, लेकिन अब वह शुद्ध सोने की है, सोना पवित्र धातु है, वह लक्ष्मी का प्रतीक है, आरोग्य का वरदान है.

इसके साथ ही काले दाने नकारात्मक शक्तियों को दूर करने वाले हैं और शिव स्वरूप हैं, लिहाजा मंगलसूत्र की भारतीय विवाह परंपरा में बड़ी मान्यता है.