हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इन दिनो एक से बढ़कर एक फिल्में बन रही हैं. इन फिल्मों के लिए पहले से ही बजट तय हो जाता है, जिसके लिए फाइनेंसर और प्रोड्यूसर्स जुटाए जाते हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक फिल्म ऐसी भी है जिसे किसानों ने खुद प्रोड्यूस किया था. यह फिल्म 48 साल बाद कुछ महीने पहले फिर से सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी.

यह फिल्म और कोई नहीं बल्कि इस साल 'Cannes Film Festival' के 77वें संस्करण में धमाल मचाने वाली फिल्म 'मंथन' (Manthan) है.

आपको बता दें फिल्म 'मंथन' को साल 1976 का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. इस फिल्म की न सिर्फ देश बल्कि विदेशी में भी खूब वाहवाही हुई थी.

श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी कालजयी फिल्म 'मंथन' भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक है.

इस फिल्म को गुजरात के करीब 5 लाख किसान ने मिलकर बनाई थी. फिल्म बनाने के लिए हर एक किसान ने 2-2 रुपए की अपनी कमाई चंदे के रूप में दी थी.

'मंथन' फिल्म 'श्वेत क्रांति' यानी दुग्ध क्रांति पर बनी है. फिल्म के सह-लेखक डॉक्टर वर्गीज कुरियन थे, जो 'श्वेत क्रांति' के ध्वजवाहक थे

फिल्म की कहानी आम गांव वालों की थी, जो सहकारी समिति बनाने में लगे हैं. फिल्म की ऐसी कहानी पर कोई निर्माता पैसे लगाएगा, यह सोच पाना जरा मुश्किल था.

फिल्म का बजट 10-12 लाख का था. हालांकि, कुरियन ने एक उपाय निकाला और किसानों से ही पैसे जुटाने का फैसला किया.

उसी समय कुरियन की गुजरात में बनाई सहकारी समिति से 5 लाख किसान जुड़ चुके थे. यह सभी किसान गांवों में बनी समितियों में सुबह-शाम दूध बेचने आते थे.

तब उन्हें एक पैकेट दूध का 8 रुपए में मिलता था. एक दिन किसानों से गुजारिश की गई कि एक समय के लिए दूध सिर्फ 6 रुपए में बेचें और बचे 2 रुपए फिल्म को चंदे के रूप में दे दें.

स्मिता पाटिल, गिरीश कर्नाड, नसीरुद्धीन शाह, कुलभूषण खरबंदा और अमरीश पुरी समेत कई कलाकारों ने इस फिल्म में अपनी जबरदस्त छाप छोड़ी है.