5 और नई भाषाओं को मिला ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा, जानें क्या हैं इसका फायदा?
पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले केन्द्रीय कैबिनेट ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को 'शास्त्रीय भाषा' का दर्जा देकर एक बड़ा फैसला लिया है.
इसके साथ ही अब भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या 6 से बढ़कर 11 हो गई है.
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस मौके पर कहा कि पीएम मोदी ने हमेशा भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी है और यह कदम उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है.
इससे पहले तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था. अब मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को इस श्रेणी में शामिल किया गया है.
इसके साथ ही महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों की भाषाओं को विशेष मान्यता मिली है.
केंद्र सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 में "शास्त्रीय भाषा" की श्रेणी बनाई थी, और सबसे पहले तमिल को यह दर्जा मिला. इसके बाद संस्कृत, तेलुगु, कन्नड, मलयालम और उड़िया को क्रमशः शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिली थी.
शास्त्रीय भाषा के मानदंडो के अनुसार, भाषा का 1500 से 2000 पुराना रिकॉर्ड होना चाहिए. साथ ही भाषा का प्राचीन साहित्य / ग्रंथो का संग्रह होना चाहिए.
जब किसी भारतीय भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता मिलती है तो उसके बाद प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथों, कविताओं, नाटकों आदि का डिजिटलीकरण और संरक्षण किया जाता है.
इसका फायदा ये होता है कि आने वाली पीढ़ियां उस धरोहर को समझ और सराह सकती हैं.
इसके अलावा शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए जाते हैं और यूनिवर्सिटी में इन भाषाओं के लिए पीठें बनाई जाती हैं. इसके अलावा शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्र सरकार की भी मदद मिलती है.